Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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शब्द किसी अर्थ को बताता है और दूसरी जगह दूसरे अर्थ को। ऐसी हालत में अगर वक्ता की विवक्षा ठीक है तो दोनों ही अर्थों में वह शब्द सत्य है। इस प्रकार विवक्षाओं के भेद से सत्य वचन दस प्रकार का है।
१) जनपद सत्य- जिस देश में जिस वस्तु का जो नाम है, उस देश में वह नाम सत्य है। दूसरे किसी देश में उस शब्द का दूसरा अर्थ होने पर भी किसी भी विवक्षा में वह असत्य नहीं है- जैसे- कोंकण देश में पानी को पिच्छ कहते हैं। किसी देश में पिता को भाई, सासु को आई इत्यादि कहते हैं। भाई और आई का दूसरा अर्थ होने पर भी उस देश में सत्य ही है।
२) सम्मत सत्य- प्राचीन आचार्यों अथवा विद्वानों ने जिस शब्द का जो अर्थ मान लिया है उस अर्थ में वह शब्द सम्मत सत्य है। जैसे पंकज का यौगिक अर्थ है कीचड से पैदा हआ पदार्थ। कीचड में मेंढक,
शैवाल, कमल आदि बहुत वस्तुएँ उत्पन्न होती है फिर भी शब्दशास्त्र के विद्वानों ने पंकज शब्द का अर्थ सिर्फ कमल मान लिया है। इसलिए पंकज शब्द से कमल ही लिया जाता है, मेंढक आदि नहीं। यह सम्मत सत्य है।
३) स्थापना सत्य- सदृश या विसदृश आकारवाली वस्तु में किसी की स्थापना करके उसे उस नाम से कहना स्थापना सत्य है। जैसे शतरंज के मोहरों को हाथी, घोडा आदि कहना। अथवा 'क' इस आकार विशेष को 'क' कहना। वास्तव में क आदि वर्ण ध्वनि रूप है। पुस्तक के अक्षरों से उस ध्वनि की स्थापना की जाती है, अथवा आचारांग आदि श्रुतज्ञान रूप है, लिखे हुए शास्त्रों में उनकी स्थापना की जाती है। जम्बद्रीप के नक्शे को जम्बूद्वीप कहना सदृश आकार वाले में स्थापना है।
४) नाम सत्य- गुण न होने पर भी व्यक्ति विशेष का या वस्तु विशेष का वैसा नाम रखकर उस नाम से पुकारना नाम सत्य है। जैसे- अमरावती देवों की नगरी का नाम है। वैसी बातें न होने पर भी किसी गांव को अमरावती कहना नाम सत्य है।
५) रूपसत्य- वास्तविकता न होने पर भी रूप विशेष को धारण करने से किसी व्यक्ति या वस्तु को उस नाम से पुकारना। जैसे- साधु के गुण न होने पर भी साधुवेष वाले पुरुष को साधु कहना।
६) प्रतीत्य सत्य- किसी अपेक्षा से दूसरी वस्तु को छोटी बडी आदि कहना अपेक्षा सत्य या प्रतीत्य सत्य है। जैसे- मध्यमा अँगुली की अपेक्षा अनामिका को छोटी कहना।
७) व्यवहार सत्य- जो बात व्यवहार में बोली जाती है। जैसे- पर्वत पर पडी हुई लकड़ियों के जलने पर भी पर्वत जलता है, यह कहना व्यवहार सत्य है।
८) भाव सत्य- निश्चय की अपेक्षा कई बाते होने पर भी किसी एक की अपेक्षा से उस में वहीं बताना। जैसे- तोते में कई रंग होने पर भी उसे हरा कहना भाव सत्य है।
९) योग सत्य- किसी चीज के सम्बन्ध से व्यक्ति विशेष को उस नाम से पुकारना। जैसे- लकडी ढोनेवालो को लकडी के नाम से पुकारना योग्य होता है।
१०) उपमा सत्य- किसी बात के समान होने पर एक वस्तु की दूसरी से तुलना करना ओर उसे उस नाम से पुकारना उपमा सत्य है। जैसे किसी के चहेरे को चन्द्र कहना ।
सत्यामृषा (मिश्र) भाषा के भी दस प्रकार है- जिस भाषा में कुछ अंश सत्य तथा कुछ असत्य हो उसे सत्यामृषा(मिश्र) भाषा कहते हैं। इसके दस भेद हैं इस प्रकार है।