Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 126
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् ७७ [मूल] नणु कह उरलनिसेहो, करणनिसेहो य साणेसु ।।१३८।। व्याख्या] गाथार्द्धम्। ननु किमिति पूर्वमेकेन्द्रियेषु ततोऽपीह विकलामनस्केषु सास्वादनभावे वर्तमानेषु औदारिककायस्येन्द्रियाणां च निषेधः क्रियात] इति।।१३७।। अत्रोत्तरम्[मूल] भन्नइ इत्थं सुणसु, भणियमिणं जह य बंधसामित्ते । इगिविगलिंदियसाणा, तणुपज्जत्तिं न जंति त्ति ।।१३९।। तो पज्जतिअभावा, किह तणुजोगो कहं च करणाइं? । जइ एवं किह तेसिं, एगबिंदियमाइ ववएसो? ।।१४०।। भन्नइ सो ववएसो, इगिं बिंदियमाइ आउरुदयाउ । अह सन्नितिरिय मिच्छे, आहारदुगूण पणपण्णा ।।१४१।। मिच्छूण पण्ण साणे, अणकम्मोरलविउव्वि मीसदुगं । वज्जिय तिचत्त मीसे, कम्मण विउव्वुरलमिस्सदुगं ।।१४२।। खिविउं छचत्त अजए, तसअविरइ कम्म उरलमीसेहिं । बीयकसाएहिं विणा, गुणचत्ता देसजइतिरिए ।।१४३।। नरि हेउ पणपन्ना, पन्न-ति-चत्ता-छचत्त-गुणचत्ता । छच्चउ दुगहियवीसा, सोलस दस नव नवय सत्त ।।१४४।। [व्याख्या] गाथाषट्कं स्पष्टम्।।१३९।।१४०।।१४१।।१४२।।१४३।।१४४।। अथ पूर्वोक्तस्य तिर्यगुणपञ्चकस्यातिदेशं नराणां गुणपञ्चके गाथाप्रथमपादेनाह [मूल] गुणपंच तिरि व नरे, व्याख्या] नरे इति(त्ति)। यथा पूर्वं तिरश्चां पञ्चसु गुणस्थानकेषु ये यावन्तश्चोत्तरहेतव उक्तास्तथात्रापि मनुष्यगुणपञ्चकेऽपि ते एतावत्सङ्ख्या एव तथैव वक्तव्या इत्यतिदेशार्थः। अथ केवलनरसम्बन्धिषु षष्ठादिष्वाह[मूल] छटे एक्कार अविरइ कसाए । तइए मुत्तु छवीसा, खेत्ते आहारतम्मिस्से ।।१४५।। साहारमीस विउव्वियमीसे मुत्तु चउवीसमपमत्ते । अप्पुव्वे बावीसा, वेउव्वहारतणुऊणा ।।१४६।। छक्कूण सोल नवमे, तिवेयसंजलतिगूण दस दसमे । संजलणलोभऊणा, नव नव उवसंतखीणेसु ।।१४७।। सच्चं असच्चमोसं, दुविहमणं दुहगई य उरलदुगं । कम्मण सत्त सजोगे, हेउअभावे(वो) अजोगम्मि ।।१४८।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207