Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 198
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् १३५ सरीखउ। जिम तेहनउ छांटउ लागउ अतिकष्टेइं फीटइ तिम ए लोभ अति महाकष्टई फीटइ ३। अनंतानुबन्धीउ लोभ कृमिराग सरीखउ । जिम ते पटउ लान (ग) उ कृमिराग किम्हइ न जाइ बालिआइ पूठिई राख रातडी थाई ४ तिम ए लोभ किम्हइ न फीटइ ४ । एवं कषाय सोल नव नो कषाय कर्मबंधनउं कारण कही । कषायसिउं सहचारी भणी नोकषाय कही । कांई हास्यनउं कारण देखी अथवा ईमई कर्मनई विशेषिनं जे हासूं आवइ ते कर्मबंधनउं कारण १ । जं जीवहुई किसीइ वस्तु ऊपरि सकारण निःकारण मननी समाधि ऊपजइ ते रति कहीइ कर्मबंधनउं कारण २ । जं किसी वस्तु ऊपरि सकारण अथवा निःकारण मननी अप्रीति उपजइ ते अरति कहीयइ कर्मबंधनउं कारण ३ । जे किसीइ वस्तुनइ विणासि अथवा ईम्हइ विषाद दुःख उपजइ ते शोक कहीयइ कर्मबंधनउं कारण ४। जं जीव हुई कांई कारणि अथवा मननइ संकल्पिइं भय ऊपजइ ते भय कही कर्मबंधनउं कारण ५। कांई अशुचि वस्तु देखी अथवा मननई संकल्पिनं सूग ऊपजइं ते जुगुप्सा कहीइ कर्मबंधनउं कारणं ६। जे पुरुषहुई स्त्री ऊपरि रागनउ अभिलाष ते पुंवेद कहीइ कर्मबंधनउं कारण ७। तृण पूलाग्नि सरीखउं। जिम तृणानउ पूलउ लगाडिउ वाइसिउं मोटी ज्वाला नीकलइ पछइ उल्हाई जाइ तिम पुरुषवेदइ पहिलुं अभिलाष तीव्र उपजइ पछइ स्त्रीसेवा पूठिइं तत्काल निवर्तइ ७ । स्त्रीहुई पुरुष नइ विषइ अभिलाष ऊपजइ ते स्त्रीवेद कहीइ। स्त्रीवेद कारिसना आगि सरीखउं । जिम ते कारिसनुं आगि पहिलउं मन्द हुइ जिम जिम हलावि तिम तिम अधिक प्रज्वलइ तिम स्त्रीवेदइ पुरुषने स्पर्शादिके करी अधिकउ अधिकउ बाधइ ८ । पुरुषइ ऊपरि अनइ स्त्री ऊपरि जे अभिलाष ऊपजइ ते नपुंसकवेदक नगरना दाह सरीखउं । जिम नगर बलतउं घणा काल लगइ रहइ मउडउ उल्हाइ तिम नपुंसकवेदनइ उदयइ राग दोहिंलउ निवर्तइ ९। ए नव नो कषाय कर्मबंधनुं कारण। एवं २५ कषाय बी (त्री) जउ कर्मबंधनउं कारण ३ | चउथउ कर्मबंधनउं कारण १५ योग मन वचन काय रूप व्यापार कही । ते पनरयोग आगइ पाछलि वखाणिया छइं । एवं कारइ ५७ भेद कर्मबंधनउं कारण । हिव ए कर्मबंधनउ कारण तेरे थानके विचारीइ छइ । किहां केतला हुइ ? इसी परि । पृथ्वीकायहुई मिथ्यात्वमांहि एक अनाभोगि मिथ्यात्व १ बार अविरतिमांहि एक स्पर्शनेंद्रियनी अविरती अनइ छ जीवनी अविरति जेह भणी पृथ्वीकायई करी छई जीवनी विराधना हुई । एवं अविरति ७ सोल कषाय अनइ नव नो कषायमांहि पुंवेद अनइं स्त्रीवेद न हुई । एवं २३ कषाय हुई। पनर योगमांहि औदारिक १ औदारिक मिश्र २ कार्मण ३ ए त्रियोग हुइं। एवं ३४ कर्मबंधना कारण । पृथ्वीकायहुई धुरि ऊपजतां छ आवली प्रमाण सास्वादन गुणठाणइउं हुर्इं तीणी वेलीअजी शरीर अनइ इंद्रिय हूआं नथी । तेह भणी मिथ्यात्व १ स्पर्शनेंद्रिय २ औदारिक ३ वर्जी थाकता ३१ ते तीवारई हुइंकर्मबंधना कारण हुई । इम अप्काय वनस्पतिकायमांहि मिथ्यात्व गुणठाण ३४ सास्वादन गुणठाणां नां वे (व) ली ३१ तेउकाय - वाउकायहुई एक मिथ्यात्वजि गुणठाणउं हुइ । तिहां पाछिला ३४ कर्मबंधनां कारण हुईं। वली एवलउ विशेष जं पर्याप्ति बादर वाउकायहुई वैक्रिय करिवानी लब्धि हुइ तेहहुई वैक्रियसरीर अनइ वैक्रियमिश्र ए २ योग अधिकी (का) हुई तेह भणी तेहनइ ३६ हुई। बेंद्रियहुइं मिथ्यात्व पृथ्वीकायना पाहिं जिह्वेद्रियनी अविरति, असत्यामृषा भाषा ए बि अधिकाईं तेह भणी तिहां ३६ हुई । सास्वादन वेलां इंद्रिय, सरीर, भाषादिक कांई हूआं नथी तेह भणी ३१ । तेंद्रियहुई मिथ्यात्व गुणठाणई ३८ हुई। सास्वादन गुणठाणई ३७ । असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियहुई कर्मेंद्रिय अधिकुं तेहभणी तेहनई ३९, सास्वादनि ३१ संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियहुइं मिथ्यात्व गुणठाणइ आहारक १ शरीर आहारकमिश्र २ ए बि योग वर्जी बीजी ५५ प्रकृति हुइं। सास्वादनि ५ मिथ्यात्ववर्जी बीजी ५०, मिश्र गुणठाणइ ४ च्यारि अनंतानुबंधिया अनइ औदारिकमिश्र १ वैक्रियमिश्र २ कार्मण ३ ए सात टाली बीजा ४३ कर्मबंध कारण हुई। अविरत गुणठाणइ औदारिकमिश्र १ वैक्रियमिश्र २ कार्मण ३ ए त्रिणिइ योग हुई तीणइ ४६ । देशविरति गुणठाणइ अप्रत्याख्यानावरण च्यारि कषाय

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