Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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________________ मुखपृष्ठ परिचय प्रकृति के प्रसिद्ध पांच मूल तत्त्व है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश। भारत का प्रत्येक दर्शन या धर्म इन पांच में से किसी एक तत्त्व को केंद्र में रखकर विकसित हुआ है। जैन धर्म का केंद्रवर्ती तत्त्व अग्नि है। अग्नि तत्त्व ऊर्ध्वगामी, विशोधक, लघु और प्रकाशक है। श्रुतज्ञान अग्नि की तरह अज्ञान का विशोधक है और प्रकाशक है। अग्नि के इन दो गुणधर्मों को केंद्र में रखकर मुखपृष्ठ का पृष्ठभू (Theme) तैयार किया गया है। कृष्ण वर्ण अज्ञान और अशुद्धि का प्रतीक है। अग्नि का तेज अशुद्धियों को भस्म करते हुए शुद्ध ज्ञान की ओर अग्रसर करता है। विशुद्धि की यह प्रक्रिया श्रुतभवन की केंद्रवर्ती संकल्पना (Core Value) है। अग्नि प्राण है। अग्नि जीवन का प्रतीक है। जीवन की उत्पत्ति और निर्वाह अग्नि के कारण होते है। श्रुत के तेज से ही ज्ञानरूप कमल सदा विकसित रहता है और विश्व को सौंदर्य, शांति एवं सुगंध देता है। चित्र में सफेद वर्ण का कमल इसका प्रतीक है। __ श्रुतभवन में अप्रगट, अशुद्ध और अस्पष्ट शास्त्रों का शुद्धिकरण होता है। शुद्धिकरण के फलस्वरूप श्रुत तेज के आलोक में ज्ञानरूपी कमल का उदय होता है।