Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 139
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् सम्मं मिच्छं मीसं, दिट्ठितिगं तत्थ सुत्तआएसा। पुढवाइ पंच मिच्छा, भूदवणे दिट्ठिदुग कम्मा॥२८॥ मिच्छं सासण सम्मं, दिट्ठिदुगं विगलअमणतिरिएसु। सन्नितिरिमणुयनारयदेवेसुं होइ दिट्ठितिगं।।२९।। आहार तणू इंदिय, ऊसासे वय मणे छ पज्जत्ती। एगिदिसु आइचउ, पंच उ विगलेसु अमणे य।।३०।। पण पज्जति सुरेसुं, भासमणा जुगव होंति जं तेसिं। तिरिमणुनिरए छप्पिअय, जीवाभिगमाइ भणियमियं तु।।३१।। पणइंदियमणवयतणुऊसासाऊणि हुंति दस पाणा। एगिदिसु ते चउरो, फासाऊतणुबलुस्सासा।।३२।। सरसणवयणा ते छ उ, सघाण सत्त उ सनेत्त ते अट्ठ। ससवण नव विगलमणे, समणा दस पाण सेसेसु।।३३।। पुढवाइकारसेसुं, लहु अंतमुहूत्तहा निरसुराणं। दससमसहस्स लहुयं, तेतीसयराइं गुरुमाउं।।३४।। बावीस सत्त समसहस, तिदिण तिदससमसहस बारसमा। उणपन्नदिण छम्मासा, पुव्वकोडि तिपल्ल पल्लतियं ।।३५।। पुढवाइ इंति जत्तो, सा इह आगइ गई उ जहिं जंति। निरयाइ आगइ चऊ, सन्नितिरिनराण चउरो वि।।३६।। भूदगतरवो तिरिनरसुरेहिं सेस? तिरियमणुएहिं। गइ पंचह निरतिरिमणुसुरसिवरूवा पण वि मणुए।।३७।। सिहिमरवो तिरिगईया, चउगइया सन्नसन्निणो तिरिया। भूदगतरुविगलनारयसुरा य जंति तिरिनरेसुं।।३८।। उप्पत्तिठाण जोणी, कुलाणि उप्पज्जमाण तणुभेया। जोणेगत्तपुहत्तं, वन्नाइचउविसेसेहि।।३९।। एत्तो चिय बहगीण वि, एगा जोणी इगिथिए णेगा। जोणिकले चउभंगो, इगबहवन्नाइजाइकओ।।४।। पढमो जह इगछगणे, जीवा इगजाइ एगवन्नाई। बितिओ तम्मि वि बितिचउबहुजाई बहुगवण्णाई।।४१।। विविहछगणेसु तइओ, समवन्नाई समाणजाइजीया। तुरिओ तेसु वि णेगे, बहुजाई णेगवण्णाई।।४२।। कुलएगकोडि कोडीसनवई कोडिलक्खपन्नासं। कोडिसहस्सा तत्थिगविगलेसुं कोडिलक्खकमा।।४।। बारस सत्त ति सत्तग, अडवीस सत्त अट्ठ नव चेव। मुच्छियरतिरिसु दोसु, सड्डतिपन्ना जओ सुत्ते।।४४।। कुलकोडिजोणिलक्खा, गब्भियरतिरीण पिहु पिहु न उत्ता। तेणेह वि न विसेसो, घडंति पुण दोण्हवि सव्वे।।५।। अधतेर बार दस दस, नव जलविथलोरुभुज त्ति वण्णेयं। सड्डाह मणुनिर सुरे, बारस पणवीस छव्वीसा।।४६।। चुलसीइ जोणिलक्खा , सग सग पुढवीजलग्गिपवणेसु। तरुसु चउवीस जं दस, चउदस पत्तेयइयरेसु।।४७।। बितिचउरिदिसु दो दो, चउरो दुह तिरिसु चउदस नरेसु। चउरो चउरो नारय, देवेसुं जोणिलक्खा उ।।८।। इत्थी पुरिस नपुंसग, वेया तिन्नी कमेण तेसुदए। इत्थीए पुरिसोवरि, अभिलासो फुफुयग्गिव्व।।४९।। इत्थिं पइ पुरिसस्स वि, रागो सुक्खतणपूलजलणसमो। महनगरदाहसरिसो, उभयभिलासो नपुंसस्स।।५०।। सन्नितिरिनर तिवेया, असन्नि संठागिइ तिवेया वि। देवा पुमित्थिवेया, नपुवेया निरयइगविगला।।५१।। पुढवाइएगकाए, पुण पुण उप्पत्ति एस कायठिई। सा लह तिरिगिहदसगे, नरे य अंतमुहभवजुम्मे॥५२॥ गुरु भूदगग्गिपवणे, असंख उसप्पिणी उ कायठिई। तरुसु अणंता बितिचउरिदिसु संखिजसमसहसा।।५३।। समयपएसवहारे, असंखलोगे हरंति जावइया। तत्तिय असंखणंता, ऊणंतलोगेऽह ताहिं तु॥५४।। पोग्गलपरट्ट ते पुण, आवलियसमयअसंखभागंमि। असन्नीतिरियाणं [य,] पुव्वकोडीओ सत्तेव।।५।। सन्निसु तिरिसु नरेसु य, सतिपल्ला सत्तपुव्वकोडीओ। भवठिइ जा सुरनरए, दुहावि सच्चेव कायठिई।।५६।। वजरिसहनारायं, पढमं बीयं च रिसहनारायं। नारायमद्धनाराय, कीलिया तह य छेवढे।।५७।।

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