Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 140
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् कीलियपट्टयमक्कडबंधा इह वजरिसहनाराया। एयतियजुत्त पढमं, बिईयमवजं अरिसहं वा।।५८॥ वजयरिसहदुगूणं, मक्कडबंधदुगसंजुयं तइयं' तुरियमिगपासबद्धं, बिइयंते कीलियाविद्ध।।५९।। पंचममबद्धपढें, सकीलियं छट्ठमं तदुगपुटुं। चरिममिगविगलअमणे, सन्नीतिरि माणवा छद्धा।।६०।। सुरनिरय असंघयणी, जीवाभिगमम्मि भणियमेयं तु। संघयणि कम्मगंथे, इगिंदिया वि असंघयणा।।६१।। समचउरंसे नग्गोहमंडले साइखुजवामणए। हुंडित्ति छ संठाणा, सव्वत्थ सलक्खणं पढम।।६२।। नाभुवरि नाभिअहो, उरपुट्टिउयरवजवयवेसु। करपयसिरगीवविणा, सलक्खणं कत्थवि न छटुं।।६३।। हुंडं चिय पुढवाइसु, निययं विविहं तरुसु विगलमणे। समणतिरिमणुसु छप्पिय, नरए भवजेयरे हुंडे।।६४।। देवे समचउरंसं, भवधारिसरीरमुत्तरं नाणा। (दारं) अवगाहो तणुमाणं, उरले तह दुविह विउव्वेय।।५।। पुढवाइकार लहुयं, उरलं भूदग्गिमरुसु गुरुयं पि। अंगुलअसंखभागो, अह गुरुजोयणसहस्सहियं ।।६।। तरुसुं विगले जोयण, बारसकोसतिग जोयणं एक्वं। समणामणतिरि जोयणसहसं मणुएसु कोसतिगं।।६७।। निरसुरभववेउव्वं, लहुयं अंगुलअसंखभागो उ। निरए पंचधणुस्सय, सुरेसु करसत्त उक्कोसं।।६८।। उत्तरवे (वि)उव्वि पवणे, अंगुलभागो असंखु दुविहं पि। सन्नितिरिमणुयनिरसुर, अंगुलसंखं सलहु सतणू।।६९।। गुरु सन्नितिरिसु जोयणसयपोहत्तं नरेसु लक्खहियं। नरएसु धणुसहस्सं, जोयणलक्खं तु देवेसु।।७०।। नाणस्स दंसणस्स य, आवरणं वेयणीयमोहणीयं। आउयनाम गोयंतराय इय मूल अडपयडी।।७१।। आवरणदुगे विग्घे, बंधहि एगिदिया हु अयरस्स। सत्तं सगतिगमूणं, जहन्नमुक्कोसओ पुन्नं।।७२।। दस इगवीस बिचत्ता, चउसयअडवीस अयर विगलमणे। सत्तंस पण ति छ चऊ, किंचूण लहू गुरू पुन्ना।।७३।। मूलियर पयडि नियनियगुरुठिइ हर सयरिकोडिकोडिए। जं लद्धं तमिगिंदियगुरुठिई किंचूण सा लहुई।।७४।। एयं चिय एगिदियबंधं विगलामणेसु जाणाहि। पणुवीसा पन्नासा, सएण सहसेण गुणिऊणं।।७५।। कम्मा असंखुगिंदिसु, संखो विगलामणेसु ऊणत्ते। पन्नवण तिवीसपए, सव्वेसि असंखु पल्लंसो।।७६।। चउदसंगतिगमणं, सत्तंसा पुन्न तिन्नि वेयणीए। लहगुरुठिड़ इगिंदिसु, विगलमणे अयर पण दस य॥७७।। इगवीसा चउ द(दु)त्तर, दुसई चउदंस पंच दस छ चऊ। किंचूणा हुस्सठिई, गुरुई जा णाणवरणिज्जे।।७८।। सा पुण दस इगवीसा, अयरपि(बि)चत्ता तह 8वीसहिया। सयचउरो उवरिं पण, ति छ चउ सत्तंसया पुण्णा।।७९।। सत्तंसो किंचूणो, मोहे एगिदि बंधठिई हुस्सा। गुरु अयरं संपुन्नं, विगलमणे अयर तिग सत्त।।८०।। चउदस बायालसयं, अंसा चउ इग दु छच्च ऊण लहू। पुन्नं पाणावीस पन्ना, सयं सहस्सं च अयर गुरू।।८१।। नाम इगि सत्तंसं, विगलमण अयर तिसत्त चउदसगं। बायालसयं उवरिं, चउइग दु छ अंस ऊन लह।।८२।। भूदवणा सत्तंसं, उच्चे विगलमण अयरतिगसत्त। चउदस बायालसयं, लहु चउ इग दु छ य ऊणंसा।।८३।। तीइगि सत्तंसदुर्ग, विगलमणा अयरसत्त चउदसगं। अडवीस दुसय पणसी, इग दु चउपणं सऊणलहू।।८४।। गुरु नामि गोइ इगि दो, सगंस विगलमण अयर सग चउद। अडवीस सपणसीया दुसई पुन्नं सइग दु चउ पंच।। ८५।। नरि घाइसुं अंतमुहू, मुहुत्त अड नामगोय बारेगे। अयरतकोडिकोडी, सत्तसु लहु तिरियनिरयसुरे।।८६।। गुरु अयरकोडिकोडी सयरी, मोहंमि नामगोएसु। वीसं तीसं चउसुं, सन्नी तिरिमणुनिरसुराणं।।८७।। लहु मज्झ गुरु अबाहा, आउ त्ति बंधेहिं हुंति नवभंगा। पढम चउ पंचमट्टम, नवमे मुणे सयं चउरो ते।।८।।

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