Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 181
________________ १३२ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् आदेयनामकर्म ५६ यशोनामकर्म ५७ स्थावर ५८ सूक्ष्म ५९ अपर्याप्त ६० साधारण ६१ अस्थिर ६२ अशुभ ६३ दुर्भग ६४ दुःस्वर ६५ अनादेय ६६ अयशोनामकर्म ६७। गोत्रकर्मि बि भेद उच्चै गोत्र१ नीचै गौत्र २। अंत्राय कर्म पांच भेद दानांतराय १ लाभांतराय २ भोगांतराय ३ उपभोगांतराय ४ वीर्यांतराय ५ एवं आठे कर्मे थई १२० प्रकृति सर्वजीवनी अपेक्षाइं बांधई। ____ को जीव केही बांधइ? कुणहई गुणठाणइ? ए उत्तर प्रकृतिनु बंध तेरे स्थानके विचारीइ छइ। पृथ्वीकायमांहि एकवीसोत्तरसउ प्रकृतिमांहि नवोत्तरसउ बांधई। जिननामकर्म १ देवगति २ देवानुपूर्वी३ वैक्रियशरीर ४ वैक्रियअंगोपांग ५ आहारकशरीर ६ (आहारक)अंगोपांग ७ देवायुष्क ८ नरकगति ९ नरकानुपूर्वी१० नरकायुष्क ११ ए इग्यार प्रकृति न बांधइं। जेह भणी पृथ्वीकाय मरी देवलोकि नरगि न जाइ। सास्वादन गुणठाणानी वेलां पृथ्वीकाय ९४ प्रकृति बांधई। जेह भणी सूक्ष्म १ अपर्याप्त २ साधारण ३ बेंद्रिय ४ तेंद्रिय ५ चरिंद्रिय ६ एकेंद्रिय जाति ७ थावर नाम ८ आतप ९ नपुंसक वेद १० मिथ्यात्व ११ हुंड संस्थान १२ सेवा संघयण १३ तिर्यागायु १४ नरायु १५ ए पनर प्रकृति न बांधइ। मिथ्यात्व पाहिं विशुद्ध परिणाम भणी अप्काय जीवहुई एजि बिहुँ गुणठाणे नवोत्तरसउ प्रकृति अनइ चउराणू छंनू प्रकृति हुइ। तेउकाय वाउकायना जीवहुई एक मिथ्यात्वजि गुणठाणउ हुइ। तिहां पंचोत्तरसउ प्रकृति बांधई। मनुष्यगति १ मनुष्यानुपूर्वी २ मनुष्यायु ३ उच्चैर्गोत्र ए च्यारि प्रकृति पृथ्वीकायना पाहिं ओछी बांधई। जेह भणी ए मरी मनुष्यगतिं न जाई। वनस्पतिकाय बेंद्रिय तेंद्रिय चरिंद्रिय जीव पृथ्वीकायनी परि मिथ्यात्वगुणठाणइ नवोत्तरसउ प्रकृति बांधई। सास्वादन गुणठाणइ चउराणू अथवा छंनू प्रकृति बांधइ। असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय मिथ्यात्व गुणठाणइ सत्तोत्तरसउ प्रकृति बांधई। तीर्थंकर नामकर्म १ आहारक शरीर २ आहारक अंगोपांग ए त्रिणि प्रकृति न बांधइ। सास्वादन गुणठाणानी वेलां नरकगति १ नरकानुपूर्वी २ नरकनउ आऊ ३ सूक्ष्म ४ अपर्याप्त ५ साधारण ६ बेंद्रिय जाति ७ तेंद्रिय जाति] ८ चउरिंद्रिय जाति] ९ एकेंद्रिय जाति १० स्थावर ११ आतप १२ नपुंसकवेद १३ मिथ्यात्व १४ हुंड संस्थान १५ सेवार्त संघयण १६ ए सोल प्रकृति न बांधइ। बीजी एकोत्तरसउ प्रकृति बांधई। संज्ञिया पर्याप्ता तिर्यंच पंचेंद्रिय हुई पांच गुणठाणाहुई। ते मिथ्यात्व गुणठाणई जिन नामकर्म १ आहारक अंगोपांग २ आहारक शरीर ३ ए त्रिणि प्रकृति टाली बीजी सत्तोत्तरसउ प्रकृति बांधई। सास्वादन गुणठाणइ पाछिली परि एकोत्तरसउ प्रकृति बांधइ। मिश्रगुणठाणइ देवतानु आऊखं, च्यारि अनंतानुबंधिया, न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान; सादि; वामन; कुब्ज ए च्यारि संस्थान, ऋषभनाराच; अर्द्धनाराच; नाराच कीलिका ए च्यारि संघयण, कत्सित विहायोगति, नीचैर्गोत्र, स्त्रीवेद, दर्भग, दःस्वर, अनादेय, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानर्द्धि, उद्योत, तिर्यंचगति, तिर्यगानुपूर्वी, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, मनुष्यायु, औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग, वज्रऋषभनाराच ए छत्रीस प्रकृति न बांधई, बीजी ६९ प्रकृति बांधई। अविरत गुणठाणइ देव- आऊखुं बांधई। तेह भणी ७० प्रकृति (बांधइ} देशविरति बांधइ। देशविरति गुणठाणइं अप्रत्याख्याना क्रोध, मान, माया, लोभ न बांधइ। तेह भणी तीणइ गुणठाणइ ६६ प्रकृति बांधई। आगिला गुण(ठाणा) तिर्यंचहुई न हुई। पर्याप्ता मनुष्यनइ १४ गुणठाणा हुई। ते तिर्यंचनी परि मिथ्यात्व गुणठाणइ ११७ प्रकृति बांधई। मिश्र गुणठाणइ ६९ प्रकृति बांधई, अविरत गुणठाणइ जिन नामकर्म अधिकउं बांधई। तेह भणी ७१ प्रकृति बांधई। देशविरत गुणठाणइ ६७ प्रकृति बांधइ। प्रमत्त गुणठाणइ प्रत्याख्याना क्रोध, मान, माया, लोभ न बांधई तेह भणी ६३ प्रकृति बांधई। अप्रमत्त गुणठाणइ ५९ अथवा ५८ प्रकृति बांधई। जेह भणी अरति, शोक, अस्थिर,

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