Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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मन:स्थिरीकरणप्रकरणम्
१२९
सयर प्रमाण; लाम्बपणि जघन्यतउ असंख्यातमउ भागउ उत्कृष्टत संख्याता जोअण लगइ तैजस सइर सहित जीवप्रदेश दण्ड बाहिरि काढइ। तीणइ करी जेह ऊपरि रीस हुइ तेह मनुष्यादिकहुई बालइ। ए तैजस समुद्धात अंतर्मुहूर्त प्रमाण हुइ ५।
वैक्रिय समुद्धातनी परिई आहारक समुद्धात जाणिवउ। ते चऊद पूर्वधरनइ आहारक शरीर करता हुइ ६।
जेह केवलीनइ वेदनीयादिकना कर्मपुद्गल घणा हुईआऊ थोडउं हुई ते पुद्गलसिउं आऊषाहुई समा करवानइ केवलि समुद्धात करइ। तेहनइ वेदनियादिक पुद्गलसिउं आऊखु समउं हुई ते न करइं। केवलि समुद्धात करतउ पहिलइ समइ पिहुलपणि = जाडपणि आपणा शरीर जेवडउ ऊपरि हेठलि लोकांत लागउ आपणा जीवप्रदेशनउ दण्ड करइ १। बीजइ समइ आपणा शरीरप्रमाण पूर्व-पश्चिम लोकांति लागउ कपाट करइ २। त्रीजइ समइ उत्तर-दक्षिण दण्ड प्रमाण जीवप्रदेश विस्तारी मंथाणउ रवाइउ करइ ३। चउथइ समइ आंतरां पूरी आपणे जीवप्रदेशे करी चऊद रज्वात्मक लोकव्यापी थाइ ४। पांचमइ आंतरा संहरइ ५। छठुइ मंथाणउ संहरइ ६। सातमइ समइ कपाट संहरइ ७। आठमइ समइ वली सयरजिमाहि आवइ ८। इम केवलि समुद्धात करता आठ समय लागई। तेहनइ पहिलउ अनइ आठमइ समइ औदारिक योग हुइ। बीजइ, छट्टइ, सातमइ समइ
औदारिकमिश्रयोग हुइ। त्रीजइ, चउथइ, पांचमइ समइ कार्मणयोग हुइ। एहे त्रिहुं समये अनाहारक हुइ। बीजे सविहू समये आहारक हुइ।
ए सात समुद्धात तेरे थानके विचारीई छई। पृथ्वीकाय १ अप्काय २ तेउकाय ३ वनस्पतिकाय ४ बेंद्रिय ५ चेंद्रिय ६ चउरिद्रिय ७ असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय ८ मांहि त्रिणि ३ समुद्धात हुई - वेदना समुद्धात १ कषाय समुद्धात २ मरण समुद्धात ३। वाउकायमांहि ए त्रिणि अनइ वैक्रिय समुद्धात हुई। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियमांहि अनइ नारकी-देवमांहि आहारक अनइ केवलि समुद्धात टाली बीजा पांच पांच समुद्धात हुई। वेदना समुद्धात १ कषाय समुद्धात २ मरण ३ वैक्रिय ४ तैजस ५ समुद्धात हुई। मनुष्यमांहि सातइ समुद्धात प्रामीअई। एम तेरे थानके समुद्धातविचारः। इति समुद्धात विचारः।
अथ परभवना आऊखानउं बंधविचार। पृथ्वीकाय परलोकि पृथ्वीकायमाहि जातउ जघन्य आऊखु अंतर्मुहूर्तप्रमाण बांधइ। उत्कृष्टउं मनुष्य अथवाइ तिर्यंचमांहि जातउ एक पूर्वकोडि प्रमाण आऊखुं बांधइ। इम अप्काय-वाउकाय-वनस्पतिकायइनइ जाणिवू। पुण एतलुं विशेष - तेउकाय अनइ वाउकाय मनुष्यनु आऊषु न बांधइ तिर्यंचजइ योगि पूर्वकोडि प्रमाण आऊखु उत्कृष्टउं बांधई। बेंद्रिय-नेंद्रिय-चउरिद्रिय परलोकि पृथव्यादिकमांहि जातां जघन्य अंतर्मुहूर्त बांधइ, मनुष्य-तिर्यंच मांहि जातां उत्कृष्टउं एक पूर्वकोडि आऊ बांधइ। असंज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रियइ जघन्य परलोकि अंतर्मुहूर्त प्रमाण आऊ बांधइ। भुवनपत्यादिकमांहि जातां उत्कृष्टउं पल्योपमनउ असंख्यातमउ भाग आऊखु बांधई। संज्ञिया तिर्यंच पंचेंद्रिय अनइ मनुष्य पृथिव्यादिक मांहि जातां जघन्य आऊखं अंतर्मुहूर्त प्रमाण बांधई। उत्कृष्टउं तिर्यंच सातमइ नरगि अनइ मनुष्य सातमइ नरगि अनइ अनुत्तर विमानि जातां उत्कृष्टउं तेत्रीस सागरोपम आऊखं बांधई। नारकी तंदुलमत्स्यादिकमांहि ऊपजतां अनइ देव पृथिव्यादिकमांहि ऊपजतां जघन्य आऊखं अंतर्मुहूर्त प्रमाण बांधइ। नारकी अनइ देवइ उत्कृष्टउं मनुष्य-तिर्यंचमांहि ऊपजता एक पूर्वकोडि प्रमाण आऊखं बांधइ। इति तेरे थानके परलोकि आऊधू बांधवानउ विचार कहिउं।।
हिव आऊखानी आबाधाकालनउ विचार कहीइ छड्। जीव परलोक योग्य आऊखउं अहां भवना त्रीजइ
१ टी.-यहाँ पर 'संज्ञिया----मनुष्यमां' तक की पंक्ति का पुनरावर्तन हुआ है । २ = शृंखला
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