Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 142
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् ९३ वेउव्वाहारदुर्ग, नारयसुहुमविगलतियगाणि। तित्थं च मुत्तु तिगहियसयमिह बंधंति मिच्छसुरा।।११९।। हुंछेनपुमिच्छ विणा, छन्नवई निरय साण सुरसाणा। नपुमिच्छायवहुंछे, इगथावरऊण छन्नवई।।१२०।। मीसा निरसुरसयरिं, नराउ साणंत पंचवीस विणा। तित्थनराउगसहियं, पिगसयरिं सम्मनिरयसुरा।।१२१।। वेयणकसायमरणा, वेउव्वितेयहारकेवलिया। समुग्घाया नरि सत्त वि, भूदतरुविगलअमण आइतिगं।।१२२॥ गीतिः।। सविउव्वं मरुनिरए, सतेयसमुग्घाय पंच तिरियसुरे। अडसमया केवलिए, असंखसमयंतमुह छसु वि।। १२३।। छम्मासवसेसाऊ, नियमा न करेइ सो समुग्घायं। हीणे करेइ नियमा, अहिए भयणा उ केवलिणो।।१२४।। बंधस्स मिच्छअविरइकसायजोगो त्ति मूल हेउचऊ। पुढवाइतेरसेसु वि, पएसु मिच्छंमि ते सव्वे।।१२५।। कम्मा भूदवणेसुं, साणं पि तहिं अमिच्छया तिन्नि। अह बिंदिमाइ अट्ठसु, गिहेसु साणंमि हेउतिगं।।१२६।। सन्नितिरिमणुयनारयसुराण मीसंमि तह य अजियंमि। तह तिरिमणु देसे वि य, हेउतिन्नेव मिच्छ विणा।।१२७।। छट्ठाइ दसंतेसुं, कसायजोगा नरेसु दो हेऊ। गुणतियगे जोगु च्चिय, हेउअभावो अजोगम्मि।।१२८।। मिच्छाइ हेउउत्तरभेया सगवन्न पंचहा मिच्छं। आभिग्गह-अणभिग्गह-संसयभिनिवेस-अणभोगा।।१२९।। बारसविहा अविरई, मणइंदियअनियमो छकायवहो। नव य कसाया किरिया, पणवीसं पन्नरस जोगा।।१३०॥ अणभोग मिच्छत्तं, फासिदिच्छकायअविरईउ य। कम्मोरलतम्मिस्सा, अनरित्थि कसायतेवीसा।।१३१।। इय चउतीसं हेऊ, इगिंदिपणगंमि मिच्छगुणठाणे। वेउव्वियतम्मिस्सयजुत्ता छत्तीस वी मरुसु।।१३२।। कम्मइगा पुण सासणभावे भूदगवणाण इगतीसं। चउतीसा उ हिच्चा उरलं फासिंदि मिच्छं च।।१३३।। नणु हेऊ उदियच्चिय, भन्नंती कम्मबंधिणो तो किं। इगबितिचउरमणाण वि, अस्थि हु हासाइणं उदओ।।१३४।। सच्चं एसिं उदओ, भणिओ जियठाणमोहसंवेहे। सयरीगंथे अट्ठसु, पंचसु एगि त्ति गाहाए।।१३५।। पुव्वुत्ता चउतीसा, सतुरियवयरसण पुण वि छत्तीसा। घाणेण चक्खुसुइणा, सगतीसडतीस गुणचत्ता।।१३६।। बितिचउरमणाणं, मिच्छे साणे उ चउहि वि उरलं। मिच्छत्ततुरियवयणं, हिच्चा नहइंदियाई कमा।।१३७।। दुगतिगचउपण मुत्तुं, तो सव्वहि होइ हेउइगतीसं। नणु कह उरलनिसेहो, करणनिसेहो य साणेसु।।१३८।। भन्नइ इत्थं सुणसु, भणियमिणं जह य बंधसामित्ते। इगिविगलिंदियसाणा, तणुपजत्तिं न जंति त्ति।।१३९।। तो पजतिअभावा, किह तणुजोगो कहं च करणाइं। जइ एवं किह तेसिं, एगबिंदियमाइ ववएसो।।१४०।। भन्नइ सो ववएसो, इगिं बिंदियमाइ आउरुदयाउ। अह सन्नितिरिय मिच्छे, आहारदुगूण पणपण्णा॥१४१।। मिच्छूण पण्ण साणे, अणकम्मोरलविउव्वि मीसदुगं। वज्जिय तिचत्त मीसे, कम्मण विउव्वुरलमिस्सदुगं।।१४२।। खिविउं छचत्त अजए, तसअविरइ कम्म उरलमीसेहिं। बीयकसाएहिं विणा, गुणचत्ता देसजइतिरिए।।१४३।। नरि हेउ पणपन्ना, पन्न-ति-चत्ता-छचत्त-गुणचत्ता। छच्चउ दुगहियवीसा, सोलस दस नव नवय सत्त।।१४४।। गुण पंच तिरि नरे, छटे एक्कार अविरइ कसाए। तइए मुत्तु छवीसा, खेत्ते आहारतम्मिस्से।।१४५।। साहारमीस विउव्वियमीसे मुत्तु चउवीसमपमत्ते। अप्पुव्वे बावीसा, वेउव्वहारतणुऊणा।।१४६।। छक्कूण सोल नवमे, तिवेयसंजलतिगूण दस दसमे। संजलणलोभऊणा, नव नव उवसंतखीणेसु।।१४७।। सच्चं असच्चमोसं, दुविहमणं दुहगई य उरलदुर्ग। कम्मण सत्त सजोगे, हेउअभावे(वो) अजोगम्मि।।१४८।।

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