Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 51
________________ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् जोगे जोगे जिणसासणंमि दुक्खक्खया पउंजंते। एक्केक्कम्मि अणंता वटुंता केवली जाया ।। (ओघनियुक्ति-२७८) इति वचनादावश्यकस्वाध्यायध्यानधर्मदेशनाप्रत्युपेक्षणायदिसमितिगुप्तिदानशीलचरणकरणसमाचरणादयो बहवोऽप्युपायाः सन्ति तथापि तेषु सर्वेष्वपि ध्यानरूप एवोपायो विशिष्टतर इत्याह मूल] कम्मस्स खवणहेऊ, परमो झाणं जिणेहिं निद्दिट्ठो । झेयं च तत्तनवगं, तत्थवि जियतत्तमाइतओ ।।२।। व्याख्या] इह परोपकारैकनिस्तन्द्रैर्जिनेन्द्रचन्द्रैर्दुष्टाष्टकर्मारिवर्गक्षपणाय तीक्ष्णतरशस्त्रसदृशं ध्यानमुक्तम्। तथाहि- संवरविनिजराओ मोक्खस्स पहो तवो पहो तासिं। झाणं च पहाणंगं तवस्स तो मोक्खहेऊ तं।। अंबरलोहमहीणं कमसो जह मलकलंकपंकाणं। सोज्झावणयण सो से साहेति जलानलाइच्चा।। तह सोज्झाइ समत्था जीवं वरलोहमेइणिगयाणं। झाणजलानलसूरा कम्ममलकलंकपंकाणं।। तावो सोसो भेओ जोगाणं झाणओ जहा णिययं। तह तावसोसभेया कम्मस्स विज्झाइणो नियमा।। अत्र तापो दुःखं तत एव शोषो [तत एव] दौर्बल्यं तत एव भेदः = अङ्गोपाङ्गानां पीडनम्। जह रोगासयसमणं विसोसणविरेयणोसहविहीहिं। तह कम्मामयसमणं झाणाणसणाइजोगेहिं।। (ध्यानशतकम्-९६-१००) यथा रोगाशयशमनरोगनिदानं चिकित्सा विशोषणविरेचनौषधिविधिभिः = अभोजनविरेचनौषधप्रकारैस्तथा कर्मामयशमन = कर्मरोगचिकित्सा ध्यानाऽनशनादिर्भिर्योगैरादिशब्दाद् ध्यानवृद्धिकारकशेषतपोभेदग्रहणमिति गाथार्थ:। जह चिरसंचियमिंधणमनलो पवणसहिओ दुयं डहइ। तह कम्मिंधणममियं खणेण झाणानलो डहइ।। जह वा घणसंघाया खणेण पवणाहया विलिजंति। झाणपवणावधूया तह कम्मघणा विलिजंति।। (ध्यानशतकम्-१०१-१०२) इत्यादि कियदुच्यते? तस्य च ध्यानस्य चतुर्विधत्वेऽप्यातरौद्रयोस्तिर्यग्गतिनरकगतिहेतुत्वेन त्याज्यत्वात्, शुक्लध्यानस्य च पूर्वगतश्रुतधरैः प्रशस्तसंहननादिभिश्च ध्येयत्वात् पारिशेष्यादिहाधुना धर्मध्यानमेव विधेयतयावशिष्यते। तस्य च यद्यपि खिइवलयदीवसागरनिरयविमाणभवणाइसंठाणं। वोमाइपइट्ठाणं निययं लोगट्टिईविहीणं।। (ध्यानशतकम्-५४) इत्यादयो बहवोऽपि ध्येयविशेषाः सन्ति तथापि झेयं चेत्यादि। इह क्षितिवलयादिषु बहुष्वपि ध्यातव्येषु प्रथमं तावज्जीवाजीवपुण्यपापाश्रवसंवरनिर्जराबन्धमोक्षाख्यं तत्त्वनवकमेव ध्येयम्। तत्रापि च तत्त्वनवके जीवतत्त्वमादिभूतं = प्रथमासनिकम्। तउ त्ति। ततोऽस्य च ततः शब्दस्योत्तरगाथया सम्बन्धः।।२।। सा चेयं[मूल] पुढवीजलग्गिमरुतरुबितिचउखदुविहपणिंदितिरिएसुं । मणुनिरसुरेसु झायसु, जियगुणठाणाइ जीवगुणे ।।३।। व्याख्या] इहातिसङ्क्षिप्ततरे विवरणके गाथानामक्षरार्थः शब्दव्युत्पत्तिसंस्कारश्च स्वयमेव व्याख्यातृ

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