Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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३) प्रत्याख्यानावरण- जिस कषाय के उदय से सर्वविरतिरूप प्रत्याख्यान रुक जाता है अर्थात् साधुधर्म की प्राप्ति नहीं होती वह प्रत्याख्यानावरण कषाय है। यह कषाय चार मास तक बना रहता है। इस के उदय से मनुष्य गति योग्य कर्मों का बन्ध होता है।
४) संज्वलन- जो कषाय परिषह तथा उपसर्ग के आ जाने पर यतियों को भी थोडा सा जलाता है। अर्थात् उन पर भी थोडा सा असर दिखाता है उसे संज्वलन कषाय कहते हैं। यह कषाय सर्वविरति रूप साधुधर्म में बाधा नहीं पहुँचाता किन्तु सब से उँचे यथाख्यात चारित्र में बाधा पहुँचाता है। यह कषाय एक पक्ष तक बना रहता है और इससे देवगति योग्य कर्मों का बन्ध होता है। ऊपर जो कषायों की स्थिति एवं नारकादि गति दी गई है। वह बाहुल्यता की अपेक्षा से है। क्यों कि बाहुबलि मुनि को संज्वलन कषाय एक वर्ष तक रहा था और प्रसन्नचन्द्र राजर्षि का अनन्तानुबन्धी कषाय अन्तर्मुहर्त तक रहा था। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी कषाय के रहते हुए मिथ्यादृष्टियों का नव ग्रैवेयक तक में उत्पन्न होना शास्त्र में वर्णित है।
क्रोध के चार प्रकार और उनकी उपमाएँ
(१) अनन्तानुबन्धी क्रोध (२) अप्रत्याख्यान क्रोध (३) प्रत्याख्यान क्रोध (४) और संज्वलन क्रोध। इस प्रकार इसके चार भेद है।
१) अनन्तानुबन्धी क्रोध- पर्वत के फटने पर जो दरार होती है उसका पुनः जुडना कठिन है। उसी प्रकार जो क्रोध किसी उपाय से भी शान्त नहीं होता, वह अनन्तानुबन्धी क्रोध है।
२) अप्रत्याख्यान क्रोध- सूखे तालाब आदि में मिट्टी के फट जाने पर दरार हो जाती है। जब वर्षा होती है तब वह फिर मिल जाती है। उसी प्रकार जो क्रोध विशेष परिश्रम से शान्त होता है वह अप्रत्याख्यान क्रोध है।
___३) प्रत्याख्यान क्रोध- बालू में लकीर खींचने पर कुछ समय में हवा से वह लकीर वापिस भर जाती है। उसी प्रकार जो क्रोध उपाय से शान्त हो वह प्रत्याख्यानावरण क्रोध है।
४) संज्वलन क्रोध- पानी में खींची हुई लकीर जैसे खींचने के साथ ही मिट जाती है। उसी प्रकार किसी कारण से उदय में आया हुआ जो क्रोध, शीघ्र ही शान्त हो जावे, उसे संज्वलन क्रोध कहते हैं।
मान के चार प्रकार(१) अनन्तानुबन्धी मान (२) अप्रत्याख्यान मान (३) प्रत्याख्यानावरण मान (४) संज्वलन मान ।
१) अनन्तानुबन्धी मान- जैसे पत्थर का खम्भा अनेक उपाय करने पर भी नहीं नमता। उसी प्रकार जो मान किसी भी उपाय से दूर न किया जा सके वह अनन्तानुबन्धी मान है।
२) अप्रत्याख्यान मान- जैसे हड्डी अनेक उपायों से नमती है। उसी प्रकार जो मान अनेक उपायों और अति परिश्रम से दूर किया जा सके वह अप्रत्याख्यान मान है।
३) प्रत्याख्यान मान- जैसे काष्ठ, तैल वगैरह की मालिश से नम जाता है। उसी प्रकार जो मान थोडे उपायों से नमाया जा सके वह प्रत्याख्यानावरण मान है।
४) संज्वलन मान- जैसे लता या तिनका बिना मेहनत के सहज ही नम जाता है। उसी प्रकार जो मान सहज ही छूट जाता है वह संज्वलन मान है।