Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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१०) संशयकरणी - अनेक अर्थों के वाचक शब्दों का जहाँ पर प्रयोग किया गया हो और जिसे सुनकर श्रोता संशय में पड जाय वह भाषा संशयकरणी है। जैसे- सैंधव शब्द सुनकर श्रोता संशय में पड जाता है किनमक लाया जाय या घोडा ?
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११) व्याकृता - स्पष्ट अर्थवाली भाषा व्याकृता कहलाती है ।
१२) अव्याकृता- अतिगम्भीर अर्थवाली अथवा अस्पष्ट उच्चारणवाली भाषा अव्याकृता कहलाती है' अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय, अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय, अपर्याप्त विकलत्रिक और अपर्याप्त असंज्ञि पंचेन्द्रिय, इन छह प्रकार के जीवों में कार्मण, औदारिक ये दो ही योग होते है। अपर्याप्त संज्ञि पंचेन्द्रिय में कार्मण, औदारिक मिश्र और वैक्रिय मिश्र ये तीन योग पाये जाते हैं।
पर्याप्त संज्ञी में सब योग पाये जाते हैं। पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय में औदारिक काययोग ही होता है। पर्याप्त विकलेन्द्रिय-त्रिक और पर्याप्त असंज्ञि पंचेन्द्रिय इन चार जीव स्थानों में औदारिक और असत्यामृषा वचन, ये दो योग होते हैं। पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय में औदारिक, वैक्रिय तथा वैक्रिय मिश्र ये तीन काय योग होते हैं ।
(४) उपयोग १२ - जिसके द्वारा सामान्य या विशेष रूप से वस्तु का ज्ञान किया जाय उसे उपयोग कहते हैं। उपयोग दो प्रकार का है- एक साकारोपयोग और दूसरा निराकारोपयोग (अनाकारोपयोग ) । जिसके द्वारा पदार्थों के विशेष धर्मों का अर्थात् जाति, गुण, क्रिया आदि का ज्ञान हो वह साकारोपयोग है। अर्थात् सचेतन और अचेतन पदार्थों को पर्याय सहित जानना साकारोपयोग है। इसे ज्ञानोपयोग भी कहते हैं। जिसके द्वारा पदार्थों के सामान्य धर्म- सत्ता आदि का ज्ञान किया जाय उसे निराकारोपयोग कहते हैं। इसे दर्शनोपयोग भी कहा जाता है।
छद्मस्थों की अपेक्षा साकारोपयोग का समय अन्तर्मुहूर्त है और केवली की अपेक्षा एक समय है। अनाकारोपयोग का समय छद्मस्थों की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त है किन्तु साकारोपयोग का समय इससे संख्यात गुणा अधिक है क्योंकि आकार ( पर्याय) सहित वस्तु का ज्ञान करने में बहुत समय लगता है। केवली की अपेक्षा अनाकारोपयोग का समय एक समय मात्र है। साकारोपयोग के आठ भेद है
१) आभिनिबोधिक-साकारोपयोग - इन्द्रिय और मन की सहायता से योग्य स्थान में रहे हुए पदार्थों को स्पष्टरूप से विषय करनेवाला आभिनिबोधिक ( मतिज्ञान) साकारोपयोग है।
२) श्रुतज्ञान साकारोपयोग- वाच्यवाचकभाव सम्बन्धपूर्वक शब्द के साथ सम्बन्ध रखनेवाले अर्थ का ग्रहण करनेवाले श्रुतज्ञान कहलाता है। जैसे- कम्बुग्रीवादि आकारवाली, जलधारणादि क्रिया में समर्थ वस्तु घट शब्द वाच्य है अर्थात् घट शब्द से कही जाती है। श्रुतज्ञान भी इन्द्रियमनोनिमित्तिक होता है और इन्द्रिय तथा मन की सहायता से ही पदार्थों का विषय करता है। अतः यह श्रुतज्ञान साकारोपयोग है।
३) अवधिज्ञान साकारोपयोग - मर्यादा पूर्वक रूपी द्रव्यों को विषय करनेवाला अवधिज्ञान साकारोपयोग कहलाता है। यह ज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना ही रूपी पदार्थों को विषय करता है।
४) मनःपर्यवज्ञान साकारोपयोग - ढाई द्वीप और समुद्रों में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत
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संदर्भ - गाथा - १७ वृत्ति
संदर्भ-गाथा - १८/१९