Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ मैं कुछ होना चाहता हूं आक्रमण विफल हो जाता है। यदि वह पहले आस-पास के छोटे-छोटे कस्बों को अपने अधीन लेता चले तो उसकी शक्ति संचित होती और फिर वह पूरी शक्ति से राजधानी पर आक्रमण कर विजयी हो सकता है। खिचड़ी को पहले आस-पास से खाते-खाते बीच तक पहुंचा जाए तो पूरा काम बन जाता है, अन्यथा नहीं। शिवाजी को अपूर्व बोध-पाठ मिला एक अनपढ़ किन्तु अनुभवी बुढ़िया से। क्या मन का अनुशासन गर्म-गर्म खिचड़ी को बीच में से खाने जैसा उपक्रम नहीं है? क्या कोई भी व्यक्ति मन को पकड़ सका है? जिसने भी सीधा मन को पकड़ने का प्रयत्न किया है वह या तो मन को पकड़ ही नहीं सका और यदि मन को पकड़ा है तो बीच में ही अटक गया है, उलझ गया है। पहले खिचड़ी को ठंडी होने की जरूरत है, फिर धीरे-धीरे आस-पास से खाते-खाते बीच तक पहुंचना है। मेरी दृष्टि में इस ग्रन्थ का नाम होना चाहिए था 'इच्छानुशासन'-इच्छाओं का अनुशासन, इच्छाओं पर अनुशासन । पर ग्रन्थ का नाम रखा है-मनोनुशासनम्, मन का अनुशासन, मन पर अनुशासन । यह एक बहुत बड़ी सचाई है कि सामने वही आता है जो दिखता है। जो ढका पड़ा है वह कभी सामने नहीं आता। नींव के आधार पर कोई नामकरण नहीं होता। झंडों के आधार पर नामकरण होता है। झंडा सबको दिखाई देता है। नींव का पत्थर कभी दिखाई नहीं देता। नींव में जो रहा हुआ है, उसे कोई आगे लाना नहीं चाहता । आगे वही लाया जाता है जो दिखता है। मन चंचल है, यह हम जानते हैं। वह चंचल क्यों है, यह हम नहीं जानते। मनोनुशासनम् में मन के अनुशासन की एक पूरी प्रक्रिया बतलाई गई है। इस प्रक्रिया के छह अंग हैं १. आहार का अनुशासन । २. शरीर का अनुशासन। ३. इन्द्रिय का अनुशासन। ४. श्वास का अनुशासन। ५. इच्छा का अनुशासन । ६. मन का अनुशासन। मन का स्थान छठा है। उससे पूर्व इच्छा का स्थान है। प्राणी का लक्षण है आहार करना। प्राणी का लक्षण है शरीर का होना। प्राणी का लक्षण है इन्द्रिय-चेतना का होना। प्राणी का लक्षण है श्वास लेना, बोलना, सोचना, चिन्तन-मनन करना। किन्तु आज इस यांत्रिक युग में ये सब लक्षण डगमगाने लगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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