Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ [८] सत्यको दना देता है और अपने अधर्म शासनको प्रवर्तित करता . है तब उसके प्रति शासक तौरपर देवी सत्ताका पक्ष लेकर असत्यका निकंदन करनेके लिये प्रकृतिके गर्भागारमेंसे एक अमोघ वीर्यवान आत्मा जन्म लेता है और इस महावीरके जन्म लेनेका हेतु जगतकी सर्व देशीय प्रकृतिके अवरोधक कारणोंको दूर करनेके लिये ही होता है। महत्ता यह अकेला सामर्थ्यको लेकर नहीं आती है परन्तु वह विघ्नोंका परिहार करने में सामर्थ्यका उपयोग करती है और वह इतने प्रबल अंतराय और सामथ्र्योंके सामने लड़नेमें उतने ही प्रमाणमें काममें आती है नितने प्रमाणमें जो २ महान् पुरुप महत्ता प्राप्त करके चले गये हैं वह मात्र उनके अन्तर्गत सामर्थ्यके प्रभावसे ही नहीं परन्तु उस सामर्थ्यको अधर्मके सामने रोकर आखिर अधर्मको परास्त करनेसे ही उन्हें प्राप्त होचुकी है। जो सामर्थ्य कार्य शून्य है उसकी जगतको कुछ खबर नहीं पड़ती। कहनेका आशय इतना ही है कि महापुरुपोंके महत्त्वका उपादान "अधर्म अथवा असत्यके सामने लड़नेमें अपने स्वार्थके लिये कृत उपयोग ही है। वस्तुतःइन महानआत्माओंको आकर्षित करनेवाला अधर्म नहीं है परन्तु जब अधर्मका प्राबल्य सत्यस्वरूपको गुंगला कर देता है तब उस समय दुःखात सत्वका , अन्तःपुकार उन परमात्माओंके पास. पहुँचता. है। महाजनोंका सच्चा महत्व तो अधर्म अपत्य और अनीतिको ही आभारी है । रामकी महत्ता रावणके अधर्मसे ही बंधी हुई है। कृष्णका ऐश्वर्य कौरवोंकी अनीतिसे जगत्को मालूम हुआ है। इसी तरह प्रवृत्तिके प्रत्येक क्षेत्रमें जिन पुरुषोंने जो कुछ महत्ता

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 117