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है। स्वस्तिक चिह्न सर्वथा मंगलकारी है। स्वस्तिक में ऊपर तीन बिंदु त्रिरत्न के द्योतक हैं। जो सम्यक्-ज्ञान, सम्यक्-दर्शन और सम्यक्-चारित्र को दर्शाते हैं। त्रिरत्न के ऊपर अर्द्धचंद्र सिद्धशिला को दर्शाता है। स्वस्तिक के नीचे जो हाथ दर्शाया गया है, वह संसारी जीवों को जन्म, जरा और मरण के भय तथा दुखों के कारणों से दूर कर अभय का आश्वासन देता है। अभयहस्त के बीच में जो चक्र दर्शाया गया है, वह अहिंसा का धर्मचक्र है। चक्र के बीच में 'अहिंसा' शब्द लिखा हुआ है। वह धर्म का केंद्र-बिंदु होने के आशय को दर्शाता है। चक्र के चौबीस 'आरे' समय (काल) के चक्र के 'आरे' के रूप में हैं। ये 'आरे' अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी के काल-चक्र को सूचित करते हैं एवं स्याद्वाद और अनेकांतवाद की सूक्ष्म दृष्टियों से वस्तु के हर पहलू को समझने और तदनुरूप आचरण करने का संदेश देते हैं। प्रतीक के नीचे संस्कृत वाक्य 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' अंकित है। यह भारतीय संस्कृति का मूल केंद्र-बिंदु और जैन परंपरा का ज्वलंत सूत्र है। इसका तात्पर्य है-जीवन में परस्पर उपकार, सहकार व सहयोग करना। यह सूत्र युगोंयुगों से संपूर्ण मानव जगत को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पंचशील सिद्धांत को मानने तथा उस पर अमल करने की प्रेरणा देता रहा है और आज भी दे रहा है। धर्मों के प्रतीक चिह्न
ईसाई धर्म का क्रॉस
इस्लाम धर्म का उगता चांद तथा
शुभ संख्या
सिक्ख धर्म के
पांच ककार केश, कड़ा, कंघा, कच्छा, कटार
जैन धर्म का प्रतीक
बौद्ध धर्म का लोक के आकार में
धर्मचक्र अभयहस्त, स्वस्तिक और सिद्धशिला
वस्तुतः धर्म शास्त्रों एवं धर्म प्रणेताओं की यह पवित्र दृष्टि ही धर्म के मूल तत्त्वों-सत्य, न्याय, करुणा, क्षमा, उदारता, संवेदनशीलता एवं आत्म-संयम को जन्म देती है।
४ / लोगस्स-एक साधना-१