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१७. दितु (६ पद्य) में 'न्त' १८. चंदेसु (७ पद्य) में 'न्द' १६. गंभीरा (७ पद्य) में 'म्भ' २०. दिसंतु (७ पद्य) में 'न्त'
इस प्रकार लोगस्स के प्रत्येक पद्य में माधुर्य व्यंजक संयुक्ताक्षरों का प्रयोग हुआ है। २. ओजो व्यंजक वर्ण विन्यास वक्रता
ओज का शाब्दिक अर्थ है-प्रताप, तेज या दीप्ति। दीप्ति, वीरता, उत्साह और आवेग के भाव को ओज कहते हैं। ओज गुण वीर, वीभत्स, रौद्र एवं भयानक रसों में होता है। मम्मट ने बताया है
दीप्तयात्मविस्तृतेर्हेतुरोजो वीररस स्थितिः ।
वीभत्स रौद्ररसयोस्तस्याधिक्यं क्रमेण च ॥" इसकी अभिव्यक्ति कठोर तथा परुष वर्गों-ट, ठ, ड, ढ़ द्वित्व वर्णों, रेफ एवं लम्बे-लम्बे समासादिक पदों द्वारा होती है। काव्य प्रकाशकार ने ओजो व्यंजक वर्णों का निर्देश किया है१. वर्ग के प्रथम व तृतीय वर्ण के साथ क्रमशः द्वितीय और चतुर्थ वर्गों का योग २. रेफ के साथ किसी भी वर्ण का पूर्व में, पर में अथवा दोनों ओर संयोग, ३. द्विरुक्त वर्ण ४. संयुक्त या असंयुक्त ट ठ, ड ढ़, तथा श ष। . लोगस्स भक्ति काव्य है। भक्ति रस काव्य को शाश्वत मूल्यवत्ता प्रदान करता है साथ ही हृदय स्पर्शिता भी। मानवीय चेतना को उर्ध्वगामी बनाकर परम अगम शक्ति के साथ तदाकार करने की क्षमता है भक्ति में। भक्ति ही वह शक्ति है, वह सेतु है जो चेतना को असीम के साथ, लघु को विराट के साथ और क्षणभंगुर जीवन को अनंत आनंदमय परम तत्त्व के साथ जोड़ती है। भक्ति ही काव्य को अमरता व शाश्वत सौन्दर्य प्रदान करती है। - यद्यपि भक्ति काव्य होने के कारण लोगस्स में आवेगादि का भाव नहीं है,
सामान्य रूप से प्रसिद्ध युद्ध आदि के लिए उत्साह भी नहीं है लेकिन विचारणा विश्लेषण करने से यह स्पष्ट उभरकर सामने आता है कि ओजत्व के बिना समर्पण हो ही नहीं सकता। एकनिष्ठता और विश्वास की बात तो बहुत दूर है।
ओज का मानसिक भाव है दीप्ति, चित्त विस्तार और उत्साह जो लोगस्स के प्रत्येक पद्य में विद्यमान हैं, यथा
लोगस्स देह संरचना के रहस्य / ६३