Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 01
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 153
________________ १. लोगस्स उज्जोयगरे (लोग उद्योतकर) यहाँ लोक और उद्योत-ये दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं जिन्हें साधना की दृष्टि से भी समझना उपयुक्त है। इस दृष्टि से पहले 'उद्योत' शब्द की मीमांसा कर 'लोक' शब्द की मीमांसा को समझना उचित रहेगा। उद्योत सामान्यतः उद्योत का अर्थ प्रकाश माना जाता है पर उद्योत शब्द दो शब्दों की अभिव्यंजना प्रस्तुत करता है१. सूर्योदय २. अरूणोदय * दृश्यमान होकर जो निकलता है वह प्रकाश है, सूर्य के साथ इसका प्रयोग इसी अर्थ में हुआ है। अदृश्य रहकर जो अंधेरा हरता है वह उद्योत कहलाता है। जैसे अरूणोदय का आगमन सूर्योदय की पूर्व प्रस्तावना है। अतः सूर्य से इसका महत्त्व कम नहीं है। अंधकार का हटना प्रकाश के आगमन की महत्त्वपूर्ण घटना है। इस पूर्व घटना में ही पूर्व दिशा का राज है। सुप्त व्यक्ति को अंधेरे की तरह जागृतचेता को उद्योत चाहिए, जैसे मृगावती को केवलज्ञान, चण्डकौशिक को जाति स्मृतिज्ञान आदि। आचार्य मानतुंग ने बहुत यथार्थ कहा है कि सूर्योदय से पूर्व फैलने वाली प्रभा (अरूणोदय) से ही जब कमल खिल उठते हैं तो सूर्य की प्रभा से कमल खिलेंगे उसका तो कहना ही क्या? इसी प्रकार हे जिनेन्द्र! आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं । त्वसंकथापि जगतां दूरितानी हंति ॥२ “समस्त दोष रहित आपका स्तवन तो दूर आपकी उत्तम कथा (चर्चा नाम आदि) ही जगत् के प्राणियों के पापों का नाश कर देती है।" भगवान महावीर ने दो प्रकार के प्रकाश बतलाए१. पुद्गल परिणामी प्रकाश २. आत्म परिणामी प्रकाश १. पुद्गल परिणामी प्रकाश अपनी सीमा में प्रकाश करते हैं। सहारे से प्रकाश देने वाले पदार्थ तो संसार में अनेक हैं। प्राणी जगत् में जुगनू, मछली आदि कुछ प्राणियों के देह पर्याय ही ऐसे होते हैं कि जब वे चलते हैं तो उनके शरीर से प्रकाश रश्मियां फूटती हैं। प्रस्तर जगत् में सूर्यकांत, चन्द्रकान्त मणि आदि भी लोगस्स एक धर्मचक्र-१ / १२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254