Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 01
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ जागरूक रहती हैं अतः उनके प्रति हमारी जागरूकता प्रतिरोधक क्षमता को वृद्धिंगत करने में अनन्य सहायक बनती है । तीसरी विधि यह विधि रात्रि शयन अथवा प्रातः जागरण के समय करने से शक्तिशाली आभामंडल के निर्माण के साथ-साथ आरोग्य, बोधि और समाधि की भी प्राप्ति होती है। विधि निम्न प्रकार से है दोनों हथेलियों को खुला मिलाकर अपने नेत्रों के सम्मुख रखें । सर्वप्रथम अंगुलियों के चौबीस पर्वों पर चौबीस तीर्थंकरों का नाम स्मरण करें। तत्पश्चात उसी मुद्रा में हाथों को सामने रखते हुए नौ बार 'आरोग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमं दिंतु', 'सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु' बोलें। रात्रि शयन के समय यह मंत्र बोलकर दोनों हाथों को मुँह पर तथा सिर पर फेरकर योगनिद्रा में प्रविष्ट होने से अवचेतन मन में वे संस्कार पुष्ट होते रहते हैं तथा सुबह उठते समय भी यह प्रयोग अत्यन्त लाभकारी होता है । प्रातःकाल यह प्रयोग करने के पश्चात जो स्वर चल रहा हो उसी पैर को पहले बिस्तर से बाहर रखना चाहिए, ऐसा श्रुतानुश्रुत है । किसी भी प्रयोग को संकल्पवूक नियमित करते रहने से वह संचेतन अर्थात् शक्तिशाली बनकर हमारी लक्ष्यसिद्धि में सहयोगी बनता है । रोगोपशमन के लिए इसकी दो प्रकार की विधियां अध्यात्म चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त हैं - १. रोग अथवा रोग के स्थान पर ध्यान केन्द्रित कर लोगस्स का पूरा पाठ अथवा इसके किसी एक पद या एक अक्षर का अविरल पुनरावर्त्तन, जप के रूप में करें। इस विधि से वेदना कारक असात वेदनीय कर्म का उपशम होता है। रोग की भी उपशांति हो जाती है । " २. रोग की वेदना से ध्यान हटाकर दुःखद अनुभूति की अवगणना- उपेक्षा करके लोगस्स स्तव में लयलीन हो जाना । इसे मनोविज्ञान और योग की भाषा में ध्यान [ मानसिक प्रवृत्तियों का अन्यत्र केन्द्रीकरण अथवा ध्यान का परिवर्तन Diversion of attention] भी कहा जाता है । यद्यपि इस विधि में भी रोग की शांति असातावेदनीय कर्म के क्षयोपशम अथवा उपशम से होती है किंतु प्रक्रिया में भेद है। दोनों प्रक्रियाएँ विभिन्न मार्गों के समान अलग-अलग हैं किंतु मंजिल, लक्ष्यबिंदु एक ही है, वह है वेदना या रोग की उपशांति । १२ सन् १६६५ का घटना प्रसंग है। साध्वी कुशलप्रज्ञाजी को जहरीली मलेरिया हो गई। काफी ईलाज के बाद भी स्वस्थ नहीं हुई । अन्त में एक बार हाई पावर shah प्रयोग से बुखार तो उतर गया, पर बहुत ज्यादा कमजोरी आ गई, बैचेनी लोगस्स : रोगोपशमन की एक प्रक्रिया / २०७

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254