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१६. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ मल्लिनाथाय नमः चोरभय दूर २०. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ मुनिसुव्रतनाथाय नमः शनि ग्रह शांति २१. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमिनाथाय नमः सब अच्छा (सर्वत्र सफलता) २२. ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नेमिनाथाय नमः इच्छित कार्य की सिद्धि २३. ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह पार्श्वनाथाय नमः इच्छित कार्य की सिद्धि २४. ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह महावीराय नमः सुख-संपत्ति की प्राप्ति बीस विरहमान
लोगस्स के प्रथम पद्य में 'चउविसंपि केवली' शब्द आया है, उसमें 'अपि' शब्द और चौथे पद्य में वद्धमाणं के पश्चात जो 'च' शब्द है, ये दोनों ‘अपि' और 'च' महाविदेह क्षेत्र के तीर्थंकर, जो बीस विहरमान कहलाते हैं तथा वर्तमान में तीर्थंकर हैं, उनके लिए प्रयुक्त हुआ है।
हमारे भरत क्षेत्र के ईशाण कोण में करोड़ो किलोमीटर की दूरी पर जम्बुद्वीप के महाविदेह क्षेत्र की शुरूआत होती है। उसमें ३२ विजय हैं। इन विजयों में आठवीं विजय का नाम पुष्कलावती है। उसकी राजधानी पुंडरिकीनी नगरी है। गत चौबीसी के सतरहवें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथजी के शासनकाल और अठारहवें तीर्थंकर श्री अरनाथ के जन्म से पूर्व श्री सीमंधरजी स्वामी का मति, श्रुत व अवधि-इन तीन ज्ञान सहित जन्म हुआ। उसी समय उसी दिन अन्य १६ विहरमान का भी अपने-अपने क्षेत्र तथा विजय में जन्माभिषेक महोत्सव मनाया गया।
भरत क्षेत्र, २०वें तीर्थंकर मुनि सुव्रत और २१वें तीर्थंकर नमिनाथजी के प्राकट्य काल के मध्यवर्ती समय अयोध्या में राजा दशरथ के शासनकाल दरमियान और रामचन्द्रजी के जन्म से पूर्व श्री सीमंधरजी आदि बीस विहरमानों ने महा अभिनिष्क्रमण किया। (उदययोग में फाल्गुन शुक्ला तृतीया के दिन दीक्षा अंगीकार की) दीक्षा लेते ही उन्हें चौथा मनःपर्यंव ज्ञान प्राप्त हो गया। सभी विहरमानों का छदमस्थ काल ११००० वर्षों का-चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन सभी को एक साथ केवलज्ञान व केवल दर्शन की प्राप्ति हुई। प्रत्येक विहरमान के ८४-८४ गणधर, दस-दस लाख केवल ज्ञानी, सौ-सौ करोड़ साधु-साध्वियां तथा नौ-नौ सौ करोड़ श्रावक-श्राविकाएं हैं।
आने वाली चौबीसी के आठवें तीर्थंकर श्री उदयस्वामी के निर्वाण के पश्चात और नौवें तीर्थंकर श्री वेणल स्वामी के जन्म से पूर्व सभी विहरमान श्रावण शुक्ला तृतीया के अलौकिक दिन को चौरासी लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर निर्वाण पद को प्राप्त करेंगे। सीमंधर स्वामी की आयु अभी डेढ़ लाख वर्ष पूरी हुई है, सवा
१७४ / लोगस्स-एक साधना-१