Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 01
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 210
________________ जैसे विद्यार्थी का परीक्षा में सफल होना मुख्य है परन्तु उससे पहले पढ़ना अनिवार्य है। भोजन मुख्य है पर भोजन से पहले आटा, चूल्हा आदि अनिवार्य है उसी प्रकार साधक के लिए मोक्ष मुख्य है पर मोक्ष प्राप्ति से पूर्व कर्मक्षय और कर्मक्षय से पूर्व साधना आवश्यक है। अतः अध्यात्म की भेद - विज्ञानी राह पर बढ़ते रहना तत्त्व शोध और तत्त्व बोध के लिए अनिवार्य है । भक्ति में ढाई अक्षर हैं परन्तु इन ढाई अक्षरों में अक्षय पद को खींचकर निकट लाने की बात कही हुई है । मद के आठ साधनों की प्राप्ति कर्म के उदय से होती है जबकि परमेष्ठी के प्रति / तीर्थंकरों के प्रति भक्ति, बहुमान मोहनीय कर्म के आंशिक क्षय से उत्पन्न होती है। कर्म के उदय से प्राप्त सामग्रियाँ क्षणिक और नाशवान होती हैं जबकि कर्म के क्षय से प्राप्त सामग्रियाँ शाश्वत और आत्मा को आनंद देने वाली होती हैं । निश्चय नय के अनुसार हमारा शरीर आत्मा से पैदा नहीं हुआ है, कर्म से पैदा हुआ है। अतएव ज्योंहि भगवान का ध्यान करते हैं त्योंहि आत्मा का कर्म-मल जलकर दूर हो जाता है। शुद्ध आत्म तत्त्व निखर आता है। आत्मा सदा के लिए अजर-अमर परमात्मा हो जाता है । यह जैन संस्कृति का ही आदर्श है कि भक्त भी भगवान का ध्यान करते-करते अन्त में भगवान बन जाता है। जिन पद और निज पद में केवल व्यंजनों का ही परिवर्तन है स्वर वे ही हैं । इसी प्रकार जो आत्मा निज है वही जिन है । केवल कर्म पर्याय को बदलकर शुद्ध पर्याय में आना आवश्यक है। अतः स्पष्ट है कि अर्हतों के 'विहुयरयमला स्वरूप' का ध्यान भक्त साधक को भी 'विहयरयमला' बनाने में समर्थ है और यही 'तित्थयरा में पसीयंतु' का इसके साथ रहस्य है । पहणजरमरणा एक बार एक बहन ने साध्वियों से लोगस्स का पाठ याद करना प्रारंभ किया। प्राचीन समय में पुस्तकीय ज्ञान नहीं था मुखस्थ ज्ञान की परिपाटी प्रचलित थी। उस बहन ने एक दिन क्रमशः चलते-चलते 'पहीणजरमरणा' का बोल लिया और घर आकर याद करने बैठी । वह पहीणजरमरणा तो भूल गई और 'पीहर में जाकर मरना' इस पाठ को रटने लगी । याद करते-करते उसने सोचा आज साध्वी श्री जी ने यह क्या पाठ पढ़ाया। मौत किसी को पुछकर थोड़े ही आती है। इसी ऊहापोह में वह अपनी जेठानी के समीप पहुँची और पूछने लगी- भाभीजी ! पीहर में जाकर मरना अच्छा या ससुराल जाकर। भाभीजी ने कहा- आज यह प्रश्न कैसे उठा ? तब वह बोली महाराज ने लोगस्स के पाठ में आज मुझे यह बोल दिया है १८४ / लोगस्स - एक साधना - १

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