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प्रवेश करने का अवसर मिलता है जिसको प्रतिपल ‘अल्फास्टेट' के रूप में ई.ई. जी. मशीन पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। स्तुति आदि से जीवनी-शक्ति में असाधारण रूप से अभिवृद्धि होती है। चिकित्सा विज्ञान की भाषा में जप आदि से रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धिंगत होती है।
भगवान महावीर जितने अन्दर से सुन्दर थे उतने ही बाहर से सुन्दर थे। उनका आन्तरिक सौन्दर्य जन्म लब्ध था और उन्होंने साधना से उसे उच्च शिखर पर पहुंचा दिया। उनका शारीरिक सौन्दर्य प्रकृति जन्य था और स्वास्थ्य ने उसे शत गुणित और चिरंजीवी बना दिया। भगवान महावीर अपने जीवनकाल में बहुत स्वस्थ रहे। उन्होंने अपने जीवन में एक बार चिकित्सा की वह भी किसी रोग के कारण नहीं, गोशालक की तैजस् शक्ति से उनका शरीर झुलस गया था तब उन्होंने औषधि का प्रयोग किया।
उनके स्वास्थ्य के मूल आधार थे१. आहार संयम २. शरीर और आत्मा के भेदज्ञान की सिद्धि ३. राग-द्वेष की ग्रंथि का विमोचन
रस लोलुपता पर विजय साधना और स्वास्थ्य दोनों दृष्टियों से अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। भोजन की अधिक मात्रा, शारीरिक
और मानसिक तनाव-ये सब शरीर को अस्वस्थ बनाते हैं। भगवान महावीर इन सबसे मुक्त थे इसलिए सदा स्वस्थ रहे। लोगस्स और आरोग्य
आरोग्य, बोधि लाभ और उत्तम समाधि जीवन एवं साधना की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ है। इनकी प्राप्ति हेतु साधक अर्हत् स्तुति के द्वारा अपनी पुरुषार्थ चेतना को सक्रिय करता है क्योंकि यह कोई एक जन्म की निष्पत्ति नहीं है। जन्म जन्मान्तरों की साधना की निष्पत्ति परिणाम लाती है। परंतु यह सत्य तथ्य है कि साधना एवं पवित्र संकल्प के द्वारा साधक अर्हत् स्वरूप के ध्यान में तन्मय बनकर आरोग्य, बोधि-लाभ तथा उत्तम श्रेष्ठ समाधि का वरण करता है। यहाँ जिस आरोग्य, बोधि लाभ और समाधि की कामना अथवा संकल्प किया गया है उसका एक विशेष अर्थ है। अतएव इन तीनों को अलग-अलग अध्यायों में समझाने का प्रयास किया गया है। इस अध्याय में केवल लोगस्स के संदर्भ में आरोग्य का ही प्रमुख रूप से विश्लेषण किया गया है।
__ आरोग्य का अर्थ है आत्म-स्वास्थ्य अथवा आत्मशांति जो भाव आरोग्य के
२०० / लोगस्स-एक साधना-१