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संत ग्रंथ अरु पंथ सब, बात बतावत तीन । हृदय हरि दिल में दया, तन सेवा में लीन ॥
आध्यात्मिक स्फुरणा को सतत गतिशील बनाए रखने में यद्यपि संतों की विभिन्न परंपराओं में आचार-विचार विषयक यत्किंचित मतभेद परिलक्षित होता रहा है, पर आत्म-कल्याण सबका लक्ष्य रहा है। इसकी साक्षी में निम्नोक्त पंक्तियां मननीय एवं स्मरणीय हैं
मान धाम धन नारि सुत, इनमें जो न असक्त । परमहंस तहि मानिए, घर बैठे ही विरक्त ।
भारत जहां हिंदू, बौद्ध और जैन - इन प्रमुख धर्म-मान्यताओं का जन्म-स्थल रहा है, वहीं इसकी समन्वयात्मक विशेषता ने इस्लाम, ईसाइयत आदि अन्य कई मान्यताओं को भी स्थान दिया हैं। अनेक धर्म-संप्रदाय, विभिन्न भाषा, रीति-रिवाज, पहनावा आदि के बावजूद इस देश की एकता, अखंडता एक विशेष पहचान रहे हैं ।
रहस्यमय हैं सब धर्मों के प्रतीक
विभिन्न संप्रदायों की पहचान के अलग-अलग माध्यम हैं। जैसे चोटी, जनेऊ, दाढ़ी, केश, 'क्रॉस' । ये मात्र धार्मिक परंपराओं को ही अभिव्यक्त करने वाले हैं, न कि आदमी को आदमी से अलग-अलग करने वाले । इन सब धर्मों के ये प्रतीक भी बहुत रहस्यमय हैं। यदि इन रहस्यों को समझकर धर्म की आराधना की जाए तो व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक संबंधों में आमूल-चूल परिवर्तन घटित हो सकता है ।
जैसे - जनेऊ के तीन धागे ही लें | ये अज्ञान, अन्याय तथा अभाव के विरुद्ध संकल्पबद्ध होकर संघर्ष करने के प्रतीक हैं । ये ईश्वर, जीव और प्रकृति के रूप हैं। ये मन, वाणी और शरीर को अनुशासन के सूत्र में पिरोए रखने का निर्देश देते हैं । इसी तरह ईसाई धर्म का 'क्रॉस' सत्य के लिए सूली पर चढ़ कर आत्मोत्सर्ग की भावना का द्योतक है । इस्लाम का हरा रंग व उगता हुआ चाँद नई उत्पत्ति, विकास व काल-गणना का प्रतीक है। सिक्ख धर्म के पांच ककार - केश, कड़ा, कंघा, कच्छा और कटार भी शौर्य, शुचिता तथा अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के संकल्प का प्रतीक हैं ।
जैन धर्म का प्रतीक संपूर्ण जीव-जगत को अहिंसा, मैत्री, अभयदान देने तथा 'परस्परोपग्रहो' का संदेश देता है। जैन प्रतीक में स्वस्तिक को त्रिलोक के आकार में, पुरुषाकार में अपनाया गया है, जिसका जैन - शासन में महत्त्वपूर्ण स्थान
अध्यात्म, स्तवन और भारतीय वाङ्मय - १ / ३