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लोगस्स में पच्चीस नाम कैसे?
इस प्रश्न का उत्तर भी जयाचार्य ने मुनि अवस्था में हेमराजजी स्वामी से बद्धाञ्जलि पूर्वक पूछा-मत्थेण वंदामि। लोगस्स “उक्कित्तणं" में पच्चीस नाम क्यों? क्या चौबीसी के स्थान पर पच्चीसी नहीं हो जायेगी?
हेम मुनि ने गंभीर स्वर में कहा-पैंसठिये यंत्र* का मूल मंत्र है-लोगस्स। यह एक विचित्र प्रयोग है। यंत्र-मंत्र की साधना शक्ति जागरण के अनूठे आयाम है। पैंसठिया यंत्र देखा तुमने? उसमें पच्चीस के अंक की अपेक्षा पड़ती है। उसी अंक पूर्ति में सिद्ध योगी एक इष्ट की प्रमुख स्थापना करता है।
लोगस्स का पाठ पैंसठिये यंत्र का सिद्ध मंत्र है। उसमें तीर्थंकर पुष्पदंत की इष्ट प्रतिष्ठापना की गई है। ‘उक्कित्तणं' किसकी रचना है। कोई नहीं बता सकता पर वह प्रभावी मंत्र है। बेशक इसमें शक्ति संपात है। मध्य युग में पैंसठिये के जाप मंत्रों में 'धनुष पंचविंशति' कहकर पच्चीस का अंक जमाया गया। मल्लिनाथ भगवान की पच्चीस धनुष की काया थी। पर काया के साथ यंत्रांक की क्या तुक रही होगी? लेकिन 'उक्कित्तणं' में एक तीर्थंकर के दोनों (सुविधिनाथ और पुष्पदंत) नाम का उल्लेख युक्तियुक्त है।२० ___ अनुयोग द्वार" में उत्कीर्तना पूर्वी तीन प्रकार की प्रज्ञापित हुई है। १. पूर्वानुपूर्वी २. पश्चानुपूर्वी ३. अनानुपूर्वी पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप
१. ऋषभ २. अजित...२४. वर्धमान-इस क्रम से इन पवित्र नामों का उत्कीर्तन (उच्चारण) करना पूर्वानुपूर्वी है। पश्चानुपूर्वी का स्वरूप
चौबीसवें वर्धमान से प्रारंभ कर यावत् १. ऋषभ पर्यन्त (विपरीत क्रम से) उत्कीर्तन करना/नामोच्चारण करना पश्चानुपूर्वी है। अनानुपूर्वी का स्वरूप
ऋषभ से लेकर वर्धमान पर्यन्त एक से लेकर एक ही वृद्धि करते हुए चौबीस पर्यन्त श्रेणी को स्थापित कर परस्पर गुणा करने से प्राप्त राशि में से प्रथम
* देखे परिशिष्ट १/१ ७२ / लोगस्स-एक साधना-१