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पाठ
सिज्जंस
वासुपूज्जं च
विमल
मतं च
जिणं
धम्मं
संतिंच
वंदामि
कुंथु
अरं च
मल्लिं
वंदे
मुणिसुव्वयं
नमिजिणं च
वंदामि
रिट्ठनेमिं
पासं
तह
वद्धमाणं च
एवं
मए
अभिथुआ
विहूय-यमला
पहीण - जरमरणा
चवीसंपि
जिणवरा
तित्थयरा
मे
पसीयंतु
कित्तिय
७८ / लोगस्स - एक साधना - १
शब्दार्थ
श्रेयांस
और वासुपूज्य विमल
अनंत तथा
जिनेश्वर
धर्म
और शांति को
वंदन करता हूँ
कुंथु
अर और
मल्लि को
वंदन करता हूँ
मुनिसुव्रत और नमिजिन को
वंदन करता हूँ
अरिष्टनेमि
पार्श्व
तथा
वर्धमान को
इस प्रकार
मेरे द्वारा
स्तुत किये हुए
रज और मल से रहित
जरा और मरण से मुक्त
चौबीसी
जिणवर
तीर्थंकर
मुझ पर प्रसन्न हो
किर्तित