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८. लोगस्स देह संरचना के रहस्य
लोगस्स में ऐसे अपूर्व मंत्राक्षर हैं जिनमें समस्त भय, विघ्न, बाधा, रोग, शोक, दुःख, दारिद्रय और अन्त के विकारों को नष्ट कर सर्व मनोरथ सिद्ध करने की अद्भूत क्षमता विद्यमान है। ग्रहों की शांति, पारिवारिक कलह निवारण, शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिक शक्तियों का विकास इस रहस्य को उजागर करता है कि लोगस्स शांति, शक्ति, संपत्ति तथा बुद्धि के रूप में विश्व में पूजित शक्तियों का आधार है। इसकी अर्हत्ता अचिन्त्य है । यह अलौकिक सिद्धियों का भंडार है। इसके अक्षर-अक्षर में मंत्रत्व ध्वनित होता है ।
ज्ञान, शक्ति व आनंद की समन्वित धारा ही चेतना की निर्मल धारा है । इसकी संप्राप्ति ही साधना का लक्ष्य है । विकसित आत्म-स्वरूप से तादात्म्य होना ही साधना का उत्कृष्ट स्वरूप है । इसलिए भक्त पहले अपने इष्ट के स्वरूप को समझने की कौशिश करता है फिर उनसे तादात्म्य साधता है । स्वरूप का ज्ञान न हो तो तादात्म्य किससे साधेगा ।
लोगस्स आत्मोदय की यात्रा है । आत्मोदय में आस्था, ज्ञान व पुरुषार्थ की अहं भूमिका रहती है। लोगस्स में इन तीनों को प्राण ऊर्जा के रूप में प्रतिपादित किया गया है। यह कोई सिद्धान्त या शास्त्र नहीं अपितु साधना का संबोध है, शाश्वत एवं सामयिक जीवन मूल्यों का समन्वय है । इसमें तत्त्वज्ञान की गूढ़ता है और उन गूढ़ तत्त्वों को सीधी सरल भाषा में कह देने की विशिष्ट रचनाधर्मिता है । यह काव्यात्मक ज्ञेय रचना है, स्वराभिव्यंजना है।
बाह्य स्वरूप
प्रत्येक अक्षर, शब्द, मंत्र, स्तोत्र एवं सूत्र का अपना-अपना स्वरूप होता है । अक्षर देह उसका बाह्य स्वरूप होता है तो अर्थदेह आभ्यन्तर स्वरूप होता है । इस पाठ में लोगस्स के बाह्य स्वरूप अर्थात् देह संरचना के विषय में चर्चा की जा रही
लोगस्स देह संरचना के रहस्य / ८६