________________
पर वह घर प्रकाश से जगमगा उठता है, उसी प्रकार इस स्तुति के माध्यम से मन का तार अनंत शक्तिशाली, अक्षय, अव्याबाध, अनंत सुख के धाम जिनेश्वर प्रभु से जोड़ देने पर वह आत्मा रूपी घर प्रकाश से जगमगा उठता है। लोगस्स : पद्य मीमांसा
लोगस्स का पाठ सप्तपदी मंत्र है। सात पद्यों की संख्या भी अपने-आप में एक अनूठा रहस्य समेटे हुए है। ज्योतिष शास्त्रानुसार बारह राशियों के स्वामी सात ग्रह ही हैं। भगवत् गीता में सात स्त्री शक्तियों-कीर्ति, श्री, वाणी, स्मृति, मेधा तथा क्षमा का उल्लेख मिलता हैं। जैन आगमों में तत्त्व निरूपण की पद्धति भी सात नयों के आधार पर ही चलती है। मुस्लिम सम्प्रदाय में ७८६ के अंक को अत्यन्त शुभ और समृद्धि सूचक माना है जैसे हिंदु धर्म के लोग “श्री गणेशाय नमः" लिखकर शुभ कार्य को प्रारंभ करते हैं वैसे मुस्लिम धर्म में ७८६ अंक लिखकर शुभ कार्य का प्रारंभ करते हैं। मकान, कार, स्कूटर आदि पर भी यही अंक संख्या लिखी मिलती है। जयाचार्य ने सात आगमों पर टीका लिखी तो आचार्यश्री तुलसी ने बच्चों को संस्कार देने हेतु संस्कार सप्तक की रचना की। जिस प्रकार सात बार, सात रंग, सात फेरे, सात स्वर, सात चक्र, सात धातुएं, सात समुद्घात, क्षपक श्रेणि के सात गुणस्थान, मोहनीय कर्म की सात प्रकृतियों का क्षय अपने भीतर विशिष्टता संजोये हुए समग्रता को प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार चेतना के असंख्य प्रदेशों को झंकृत करने की अपूर्व क्षमता विद्यमान होने के कारण 'लोगस्स' के सात पद्य अपने आप में महत्त्वपूर्ण, अद्वितीय और विलक्षण हैं। लोगस्स में नौवें तीर्थंकर के दो नाम होने से पच्चीस नाम हो गये। दो और पांच का योग भी सात ही होता है, यह भी एक अनूठा योग है।
प्रकृति का यह नियम है कि साधना के अनुरूप उपासकों का स्मरण किया जाता है। युद्धवीर युद्धवीरों का, अर्थवीर अर्थवीरों का और धर्मवीर धर्मवीरों का स्मरण करते हैं। लोगस्स में जिन धर्मवीरों (अर्हतों) की स्तुति की गई है उनका पवित्र स्मरण साधकों के दुर्बल मन में उत्साह, बल एवं स्वाभिमान का संचार करता है। लोगस्स का प्रारंभ ही अर्हत भगवन्तों की विशेषताओं से हुआ है। प्रथम पद्य में उनको पांच दुर्लभतम विशेषणों से संबोधा है जो अन्यत्र असंभव है। दूसरे से चौथे पद्य तक नाम कीर्तन, पांचवें में अर्हत् स्तुति के कारणों का उल्लेख, छठे में अर्हत् स्तुति के लाभ तथा सातवें में अर्हत् व सिद्ध भगवन्तों के स्वरूप को प्रकट कर स्वयं की सिद्धि की भावना व्यक्त की गई है।
लोगस्स एक विमर्श / ८३