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५. पांचवें पद्य में समागत स्तुति का कारण६. १. विहूयरयमला-आप रज (बंधते हुए कम) और मल (बंधे हुए कम) से
रहित हैं। २. पहीणजरमरणा-आप जरा और मृत्यु से रहित हैं।
इस पद्य में स्तुतिकार ने अपने द्वारा कृत स्तुति के कारणों का उल्लेख करते हुए कहा है-भंते! मैं आपकी स्तुति क्यों कर रहा हूँ क्योंकि आप उपरोक्त दोनों विशिष्ट महागुणों से युक्त जिनेश्वर हैं। आप मुझ पर प्रसन्न हो अर्थात् मुझमें मोक्ष प्राप्ति की योग्यता विकसित हो। ६. छठे पद्य में उधृत स्तुति के लाभ
१. आरोग्य (आत्मशांति) २. बोधि लाभ ३. श्रेष्ठ उत्तम समाधि की प्राप्ति
उपरोक्त पद्य में समाधि के साथ वरं और उत्तमं शब्द रहस्यात्मक है। इस रहस्य को आवश्यक सूत्र-मुनि तोषणीय नामक टीका के हिंदी अनुवाद में निम्न प्रकार से दर्शाया गया है-निदान रहित बोधि लाभ ही मोक्ष का कारण है। इस रहस्य को समझाने हेतु 'समाहिवरं' कहा है। समाधि दो प्रकार की होती है१. द्रव्य समाधि २. भाव समाधि
इसमें शारीरिक सुख रूप समाधि को न लेकर केवल रत्नत्रय भाव रूप समाधि का ग्रहण करने के लिए 'वरं' शब्द दिया है। अतः सनिदान बोधि लाभ का निवारण हो गया। क्योंकि ज्ञानादि रत्नत्रय की प्राप्ति मोक्ष का साक्षात् कारण है। इसलिए इस अवस्था में केवल अनिदान (निदान-रहित) बोधि लाभ रहता है। भाव समाधि भी द्रव्य आदि भेदों से अनेक प्रकार की हैं उसमें से जघन्य और मध्यम को हटाने के लिए उत्तमं शब्द का प्रयोग किया गया है।१३ ७. सातवें पद्य में समागत अर्हतों व सिद्धों का स्वरूप
१. चंद्रमा से अधिक निर्मल सिद्ध भगवान मुझे सिद्धि देवें। २. सूर्य से अधिक प्रकाशक सिद्ध भगवान मुझे सिद्धि देवें। ३. सागर सम गंभीर सिद्ध भगवान मुझे सिद्धि देवें।
सकल कर्म-मुक्त होने के कारण सिद्ध भगवन्त को चन्द्रमा से अधिक निर्मल कहने का औचित्य स्वयं सिद्ध है। आचार्य मानतुंग ने आदिनाथ भगवान की स्तुति में-आप चन्द्रमा से अधिक निर्मल क्यों हैं? इसकी बहुत सुन्दर व्याख्या . की है१४
लोगस्स एक विमर्श / ८५