________________
४. आपको प्राप्त होने से प्राणी मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं, इस कारण आपको मृत्युंजय मानते हैं ।
५. आपके अतिरिक्त कोई कल्याणकारी मोक्ष का मार्ग नहीं है इस कारण आपको ही मोक्ष का मार्ग मानते हैं ।
इसी तथ्य की पुष्टि में यजुर्वेद का निम्न श्लोक भी उपयुक्त है' -
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्आदित्यवर्ण तमसः परस्तात
तमेवं विदित्वाऽति मत्यनेति नान्य पंथा विद्यतेऽनाय ॥
अर्थात् जो नित्य अंधकार से दूर है, जिसकी सूर्य - सी कांति है, उस महापुरुष को मैं जानता हूँ । उसको जानकर ही मृत्यु से परे पहुँचा जाता है, वहाँ पहुँचने के लिए दूसरा कोई मार्ग नहीं है ।
1
पुरिससीहाणं - ( पुरुषसिंह) बल, असहाय पराक्रम और निर्भयता के कारण उन्हें सिंह की उपमा से उपमित किया गया है । इतिहास विश्रुत घटना है कि जब भगवान महावीर के जन्मोत्सव के प्रसंग पर इन्द्र को यह संशय हुआ कि नवजात शिशु सुरगण द्वारा प्रयुक्त विपुल स्नात्र जल को कैसे सहन कर पायेगा ? अवधि ज्ञान से शिशु ने इन्द्र के मनोगत भावों को जान लिया । इन्द्र का संशय दूर करने हेतु उस अद्भूत शिशु ने अपने अंगूठे से मेरु पर्वत को दबाया । परिणामतः मेरु पर्वत कम्पायमान होकर डोलने लगा ।" अर्हत् जन्म के समय भी इतने शक्तिशाली होते हैं। शास्त्रों में बताया जाता है कि एक लाख चक्रवर्ती का बल एक इन्द्र में और एक इन्द्र से अनंत गुणा बल तीर्थंकर की एक कनिष्ठा अंगुली में होता है । सचमुच तीर्थंकरों के बल की किसी से तुलना नहीं की जा सकती । यही कारण है कि अर्हतों को पुरुषसिंह कहा गया है ।
पुरिसवर पुंडरीयाणं - (पुरुषों में प्रवर पुंडरीक) कमल शुचिता, पवित्रता, निर्मलता और निर्लेपता का प्रतीक है। तीर्थंकर भगवान को पुंडरीक कमल की उपमा दी गई है। पुंडरीक कमल अन्यान्य कमलों की अपेक्षा सौन्दर्य और सौरभ में उत्कृष्ट होता है । वह श्वेत परमाणुओं से निर्मित होता है । उसके शरीर की अवगाहना एक हजार योजन की होती है। " पुंडरीक कमल की तरह तीर्थंकर मानव समुदाय में श्रेष्ठ है।
I
कमल भौतिक श्री और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का पावन प्रतीक है। यह शांति, सुख, ऐश्वर्य और श्रीदायक माना जाता है। कमल पुष्प पर विराजमान
३८ / लोगस्स - एक साधना - १