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दूसरे दृष्टिकोण से चिंतन करें तो सिद्ध जीव ही संसारी जीवों को अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आने का स्थान देते हैं । नियम से जितने जीव सिद्ध गति को प्राप्त होते हैं उतने ही जीवों का अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में निर्यात हो जाता है। अर्थात् सिद्ध बनने वाले जीवों ने स्थान रिक्त किया तभी अव्यवहार के जीवों को व्यवहार राशि में आने का स्थान मिला अतः सिद्ध स्थान देने वाले देव (परमात्मा) हैं । व्यवहार राशि में आने के बाद ही आत्मा का क्रमिक विकास होने से जीव की कर्मों से मुक्ति संभव है ।
साधक लोगस्स की स्तुति से यह भाव अभिव्यक्त करता है कि सिद्ध भगवन्तों ने मुझे व्यवहार राशि में आने का स्थान दिया और अब उसी आलंबन से मुझे सिद्ध गति मिले, यही सारा रहस्य "लोगस्स" से "सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु" में अन्तर्निहित है ।
लोगस्स का लाक्षणिक अर्थ
लोगस्स का लाक्षणिक अर्थ है - विश्व की समग्रता । समग्रता का अभिप्राय है - चेतना के अस्तित्व का साक्षीसूत्र । लोक भी शाश्वत है और हमारी चेतना भी शाश्वत है, इस प्रकार लोगस्स का अर्थ हुआ -
स्वयं का स्वभाव आनंद का आविर्भाव
भीतर का बदलाव
परमात्मा का प्रभाव
शाश्वत मूल्यों का स्वीकरण
अस्तित्त्व का बोध
आत्म-गुणों का विकास
वृत्तियों का परिष्कार अपूर्व समाधि की उपलब्धि ॥
मूलतः यह अपने आत्म-स्वरूप की ही अभ्यर्थना है । अपनी अभ्यर्थना से साधक अपने संकल्प को बलवत्तर बनाता है, भावना में दृढ़ता पैदा करता है और साधना के उच्च से उच्च सोपानों पर आरोहण की क्षमता प्राप्त करता है। इससे उसे ज्ञान का प्रकाश मिलता है। ज्ञान का प्रकाश पा लेने पर वह अपने सही कर्तृत्व को समझने की योग्यता को विकसित कर लेता है ।
लोगस्स एक सर्वे / ६१