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पद्य १, ५, ६, ७ शाश्वत हैं इदं तत्त्वं केवली गम्यम्। चतुर्विंशति आवश्यक (लोगस्स) के कर्ता। जिस प्रकार दसवैकालिक में जो शाश्वत आध्यात्मिक तत्त्व निबद्ध हैं, वे प्रवाह रूप में अनादि हैं पर आचार्य शय्यंभव को दसवैकालिक के कर्ता के रूप में याद किया जाता है। उसी प्रकार शाश्वत आध्यात्मिक तत्त्व की दृष्टि से लोगस्स अनादि और शाश्वत है पर चतुर्दशपूर्वी', श्रुतकेवली* आचार्य भद्रबाहु को दूसरे चतुर्विंशति आवश्यक के कर्ता के रूप में याद किया जाता है। आचारांग टीका के अनुसार-“आवश्यकान्तर्भूतश्चतुर्विंशति स्तवारातीयकालभाविना भद्रबाहु स्वामिनाऽकारिअ'६ । आचार्य शीलांक के इस उद्धरण से स्पष्ट प्रतीत होता है कि शब्द रूप में वर्तमान चतुर्विंशति स्तव की रचना आचार्य भद्रबाहु द्वारा की गई है।
जैन श्रुति के अनुसार तीर्थंकर के समान अन्य प्रत्येक बुद्ध कथित* आगम भी प्रमाण है।१० नंदी और अनुयोग द्वार में आवश्यक को अंगबाह्य बतलाया गया है। बारह अंग-आगमों को आधार बनाकर कुछ विशिष्ट ज्ञानी (पूर्वधर) आचार्यों के द्वारा नए सूत्रों की रचना की जाती है, वे अंगबाह्य (उपांग) कहे जाते हैं। अतएव आवश्यक सूत्र अंगबाह्य होने के कारण गणधर कृत नहीं हो सकता। साधुओं के आचार में नित्योपयोग में आने वाला यह सूत्र हैं। अतः इसकी रचना दसवैकालिक से पहले की मानी जाती है। आवश्यक भाष्य का समय विक्रम की पांचवीं, छठी शताब्दी है।
- जैन परम्परानुसार केवल द्वादशांगी ही आगमान्तर्गत नहीं है क्योंकि गणधर कृत द्वादशांगी के अतिरिक्त अंगबाह्य रूप अन्य शास्त्र भी आगम रूप में मान्य हैं। वे गणधर कृत नहीं हैं परन्तु अन्य स्थविर अंग सूत्रों के आधार पर उनकी रचना करते हैं।११
स्थविर दो प्रकार के होते हैं१. संपूर्ण श्रुतज्ञानी-चतुर्दशपूर्वी या श्रुत केवली २. दस पूर्वी विपुल ज्ञान राशि का एक परिणाम है-पूर्व। पूर्व चौदह बतलाएं गये हैं, जिनका समावेश आगम साहित्य के अन्तर्गत बारहवें अंग "दृष्टिवाद" में माना जाता है। वर्तमान में यह दृष्टिवाद अप्राप्य है। पूर्व या पूर्वो का ज्ञान धारण करने वाला मुनि पूर्वधर कहलाता है। चौदह पूर्वो का ज्ञाता चतुर्दश-पूर्वी और दस पूर्वो का ज्ञाता दसपूर्वी कहलाता है। श्रुतकेवली-चतुर्दश पूर्वी श्रुत केवली कहलाता है। ज्ञानावरण कर्म के क्षीण होने पर पुरुष केवली बनता है। श्रुत ज्ञानावरण का विशिष्ट क्षयोपशम होने पर पुरुष केवली बनता है। सुत्तं गणहर कथितं तहेव पत्तेयबुद्ध कथितं च। सुदकेवलनिया कथितं अभिण्णदसपूवकथितं च ॥
) लोगस्स एक सर्वे / ६५