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में धर्मोद्यत करते हैं ।
प्राणी मात्र को अभय देने के कारण तीर्थंकरों को अभयदयाणं, ज्ञान नेत्र प्रदाता होने के कारण चक्खुदयाणं, रत्नत्रयी का मार्ग बताने के कारण मग्गदयाणं, शरणदाता होने के कारण शरणदयाणं, संयम प्रदाता होने के कारण जीवदयाणं, सम्यक्त्व का बोध कराने से बोहिदयाणं, धर्मप्रवर्तन करने के कारण धम्मदयाणं, उनका शासन चलने के कारण धम्मनायगाणं, धर्म देशना देने के कारण धम्मदेसयाणं, चतुर्विध संघ रूप रथ के कुशल संचालक/ सारथि होने से धम्मसारहीणं, चार गति का अन्त करने के कारण धम्मवर चाउरंत चक्कवट्टीणं और जहाँ आकर संसार का प्रत्येक प्राणी सुरक्षित रहता है, अर्हत् इस संसार में द्वीप - टापू के समान होने से दीवोत्ताणं सरणगइ पइट्ठाणं अर्थात् द्वीप, शरण, गति और प्रतिष्ठा रूप संबोधनों से संबोधा गया है।
केवल ज्ञान व केवल दर्शन के धारक होने के कारण तीर्थंकरों के अप्पडिहयवर नाणदंसणधराणं, कषाय और घाती कर्म से मुक्त होने के कारण विअट्टछउमाणं, जयी और जीताने वाले होने से जिणाणं जावयाणं, तीर्ण-तारक होने से तिन्नाणं तारयाणं, बुद्ध और बोधिदाता होने से बुद्धाणं बोहयाणं, मुक्त-मुक्तिदाता होने से मुत्ताणं- मोयगाणं, सर्वज्ञ होने से सव्वण्णूणं, सर्वदर्शी होने से सव्वदरिसीणं कहा गया है ।
सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्ति - सिद्धि गइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं / संपाविउकामाणं - इसमें 'संपाविउकामाणं' शब्द मोक्ष को प्राप्त करने वाले वर्तमान तीर्थंकर की दृष्टि से कहा जाता है और जो तीर्थंकर मोक्ष में पधार गये हैं उनके लिए 'ठाणं संपताणं' अर्थात् मोक्ष स्थान को प्राप्त हो चुके, शब्द प्रयुक्त किया गया है । इस पंक्ति में यह स्पष्ट किया गया है कि मोक्ष स्थान कैसा है? मोक्ष की कतिपय विशेषताएं जो यहाँ व्यक्त की गई हैं
• सिवम्
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अचलम्
अरुयम्
अणतम्
अक्खयम्
अव्वाबाहम्
•
कल्याणकारी
अचल / स्थिर
रोग रहित
अन्तरहित (अनंत)
अक्षय / अविनाशी
अव्याबाध/ बाधा रहित पुनरागमन से रहित
वित्त
जियभयाणं- (भय-विजेता) संसार में जन्म, जरा और मृत्यु के महान भय है । अर्हतों ने इन पर विजय प्राप्त कर ली है और वे सर्वथा भयों से मुक्त हो चुके हैं।
४२ / लोगस्स - एक साधना-१