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अवचेतन मन की खोज कर मनोवैज्ञानिकों ने एक नई क्रांति का सूत्रपात किया। कुछ परामनोवैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य का मस्तिष्क रहस्यों के तंतुजाल से बना एक करिश्मा है। वह अपनी एकाग्रता का विकास कर ग्रहण एवं प्रेषण की कई ऐसी क्षमताओं को उजागर कर सकता है जो इंद्रिय बोध की मर्यादा में नहीं आती, जैसे दूरबोध, विचार संप्रेषण, विचार संक्रमण आदि। प्रस्तुत प्रसंग में मार्क ट्वेन की घटना का उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा।
घटना प्रसंग सन् १६०६ का है। उन्हें सन् १८८५ में स्वयं द्वारा लिखित एवं क्रिश्चियन युनियन द्वारा प्रकाशित एक लेख की आवश्यकता थी। मार्क ट्वेन की इस विषय में की गई सारी मेहनत बेकार हो गई। यूनियन कार्यालय भी उनकी सहायता नहीं कर सका। दूसरे दिन वे न्यूयार्क की फिफ्थ ऐवेन्यू से होकर जा रहे थे। चवालीसवीं स्ट्रीट को पार करते हुए प्रतीक्षा में खड़े थे। अचानक एक अजनबी व्यक्ति भागता हुआ आया और काग़जों का एक पुलिन्दा उन्हें थमाते हुए बोला-“मैं इन्हें बीस साल से अपने पास रखे हुए था। पता नहीं क्यों आज सुबह ही मुझे ऐसा लगा कि मैं इन्हें आपको भेज दूं। मैं अभी इन्हें पोस्ट करने जा रहा था कि आप स्वयं ही मिल गये। मार्क ट्वेन ने उन्हें धन्यवाद दिया। कुछ ही क्षणों में वह व्यक्ति भीड़ में लुप्त हो गया। मार्क ट्वेन ने पाया कि वह प्रति उसमें थी जिसकी वे व्यग्रता से खोज कर रहे थे। मार्क ट्वेन का मत है कि यदि कोई ऐसा तरीका निकल जाए जिससे दो मस्तिष्कों में इच्छानुसार-सामंजस्य स्थापित किया जा सके तो टेलीफोन, टेलीग्राम आदि धीमे संचार साधनों का परित्याग कर व्यक्ति मुक्त रूप से विचारों का आदान-प्रदान कर सकता है। अवचेतन मन की शक्ति एवं अतीन्द्रिय चेतना के आधार पर ही यह संभव हो सकता है। वस्तुतः मनुष्य के अवचेतन मन की शक्ति अपरिमित तथा अनंत है। वह अनंत-ज्ञान, अनंत-अनुभूति एवं अनंत-भावनाओं से युक्त रहता है। इसी अवचेतन की पृष्ठभूमि में समुद्भूत चेतना की शाब्दिक अभिव्यक्ति का नाम है-स्तुति। श्रद्धा का अनूठा चमत्कार
जब तक मन में श्रद्धा अथवा विश्वास का उद्रेक नहीं होता है, तब तक स्तुति का प्रणयन नहीं हो सकता। यद्यपि शब्दों का अपना प्रभाव, अपने प्रकंपन होते हैं परन्तु जब वे शब्द स्तुति या जप के रूप में एकाग्रचित्त भावना से श्रद्धासिक्त होकर अभिव्यक्त होते हैं तो उनकी विशेष प्रभावकता में कोई संदेह नहीं रहता।
भोपालगढ़ के पारस सुराणा की धर्मपत्नी श्रीमति सोनल सुराणा के मस्तिष्क में मलेरिया बुखार आने से वह मूर्छित हो गई। उसे तत्काल अस्पताल ले जाया
स्तुति और मनोविज्ञान / ५१