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तीसरा भाग ....... १-जिनवल्लभ का परिचय (गणधर सार्द्धशतक) २ २-जिन वल्लभ की दीक्षा और गुरु से कलह ३-जिनवल्लभ चैत्यवासी और उनका विरोध ४-वल्लभ ने किसी संविग्न के पास दीक्षा नहीं ली थी ५ ५- वल्लभ ने छठे कल्याणक की उत्सूत्र प्ररूपना की ७ ६-वल्लभ ने छट्ठा कल्याणक प्रगट किया ७-वल्लभ ने कंधा ठोक कर छट्ठा कल्याणक प्रगट किया १२ ८-ऋषभदेव के छः नक्षत्र ९-तीर्थकर का उग्रकुलादि में जन्म के विषय १०-मरिचि का मद से नीच गौत्रापार्जन करना ११-हरिभद्रसूरि के पंचासक में ५ कल्याणक १२-अभयदेवसूरि की टीका में ५ कल्याणक १३-वल्लभ को संघ बाहर की सजा १४-देवभद्राचार्य का अन्याय १५-वल्लभ के नये मत की वंशावली १६-सोमचन्द्र से जिनदत्तसूरि १७-जिनेश्वरसूरि १८-जैसलमेर की सं. ११४७ की मूर्ति १९-खरतरों के झूठ लिखने का सिद्धान्त २०-जिनदत्त ने पाटण में स्त्रीजिन पूजा निषेध किया २१-जावलीपुर के संघ का कर्तव्य २२-जिनदत्तसूरि से खरतर शब्द २३-जिनदत्तसूरि का लिखा हुआ कुलक ग्रन्थ