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॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
। प्रस्तावना ।।
।। ६२ ।।
तैयार करायेला छे. १२ मो परिच्छेद जिनबिंब प्रवेशविधिओ बतावे छे, प्रचलित सविस्तर बिंब प्रवेशविधि उपरांत आमां संक्षिप्त बिंबप्रवेश विधिओ छे जेमा १ बिंब गृहप्रवेशविधि छे अने २ जिनबिंब चैत्य प्रवेशविधिओ छे जो आ संक्षिप्त प्रवेश विधिओनो प्रचार थाय तो ए निमित्ते थतो धनव्यय अने समयव्यय घणो बचावी शकाय तेम छे.
१३-१७ परिच्छेद - १३ थी १७ सुधीना ५ परिच्छेदोमां पूजा विधिओ तथा शांतिकविधिओ छे, ते पैकीनी अर्हदभिषेकविधि | वादिवेतालशान्तिसूरिजीनी संस्कृत कृति छ, आ अभिषेक विधि अप्रसिद्ध छे छतां महत्त्वपूर्ण छे. आ अभिषेक विधिनां ९९ संस्कृत पद्यो छे जे घणां ज विद्वत्ता पूर्ण छे. अमे आ विधिने भाषान्तरित करीने ज नहिं पण भणावी शकाय ए रीते प्रक्रियाबद्ध विधिनी
साथे आपी छे. । आ अभिषेक विधिनो रचनाकाल कई शताब्दी छे ए निश्चितपणे कहे, मुश्केल छे छतां एटलुं तो निर्विवादपणे कही शकाय के
आ कृति नवमां सैका पहेलांनी छे, केमके शीलाचार्यापर नामधारी तत्त्वादित्यनी एना उपर संस्कृत पंजिका मले छे, पंजिकाना प्रारंभमां कर्ता कहे छे.
"अर्पितमनर्पितं वस्तु-तत्त्वमुदितं नयद्वयादेकम् । यैस्ते सद्भूतगिरः कृताभिषेका जयन्ति जिनाः ॥ अभिषेकविधिमुदारं, यं पर्वभिराह वादिवेतालः । तत्पञ्जिकामनुगुणां, कतिपयपदभञ्जिकां वक्ष्ये ॥ पंजिकान्ते-इति श्रीशान्तिवादिवेतालीये भगवदर्हभिषेकविधौ तत्त्वादित्यकृतायां पञ्जिकायां पंचमपर्व ॥९९॥"
पंजिकाकारनी लेखन शैलि ज कही आपे छे के एओ ८-९ मा (आठमा नवमा) सैका पछीना नथी, पञ्जिकाना समाप्ति लेख उपरथी जणाय छे के अर्हदभिषेक विधिना रचयिता श्रीशान्तिसूरि 'वादिवेताल' ना नामथी अधिक प्रसिद्ध हता, प्रत्येक पर्वनी समाप्ति
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