Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ प्रतिष्ठोपस्करः ॥
॥ ५२४ ॥
जिन जननी पासे मेहेला, करे अट्ठाइनी केलि । नंदिसरें जिनगेहे, करे महोच्छव ससनेहे ॥१८॥ ढाल-हवे राय महोच्छव करे रंग भरि थयो जब परभाति, सुर पूजीओ सुतनयननिरखी हरषियो तब तात । वर धवल मंगल गीत गाता गंधर्व गावइ रास, बहु मान दान सुखिया कीधा, सकल पूगी आस ॥१९॥ तिहां पंचवरणी कुसुमवासित भूमिका सलित्त, तव अगर कुंदर धूप धूपणां ढाल्यां कुंकुंमलित्त । सिर मुकट मंडण कांने कुंडल हिइ नवसर हारि, इम सयल भूषण भूषितांबर जगत परिवार ॥२०॥ जिन जन्म कल्याण महोच्छवे चउद भुवन उद्योत, नारकि थावर प्रमुख सुखिया सकल मंगल होत । दुख दुरित ईति शमित सघलां जिनराजने परताप,तिणहेत्ते शांतिकुमार ठवीउं नाम अति आल्हाद ॥२१॥ कलश-श्रीशान्तिजिननो कलश भणतां हुइ मंगलमाल, कल्याणकमला केलि करता लहे लील विलास । जिन स्नात्र करीइ सहेज तरीइ भवसमुद्द अपार, श्रीज्ञानविमलसूरिंद जंपे श्रीशांतिजिन जयकार ।
॥ श्रीशान्तिनाथजीनो कलश संपूर्ण ॥
५ परिच्छेदः - प्रतिष्ठोपस्करः । प्रतिष्ठा विविधाङ्गेधू-पयोगी यो नियोगत । उपस्करगणः सोऽत्र, समासेनोपवर्णितः ॥६॥
प्रतिष्ठाना अंगभूत एवा भिन्न भिन्न अनुष्ठान कार्योमा जे जे सामाननी अनिवार्य उपयोगिता होय छे तेवा सामाननी आ परिच्छेदमां सूचिओ आपेली छे.
।। ५२४ ॥
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