Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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॥ कल्याण
कलिका.
खं० २ ।।
।। ५२९ ।।
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सूचनाउपरनी सूचीमां जणावेल सामान अंजनप्रतिष्ठास्थापना अने शांतिस्नात्र अथवा अष्टोत्तरी स्नात्रनो संयुक्त छे, लखेल प्रमाणमां स्थितिवशात् साधारण बधारो घटाडो पण थड़ शके छे.
मारवाडमां अंजनशलाकामां ज नहिं स्थापनाप्रतिष्ठामां पण तोरण बांधवानो रिवाज छे अने एना चढावाना हजारो रुपैया थाय छे, बळी त्यां देरासर बनावनार शिल्पीना सन्मानार्थे गज आदि उपकरणो चांदीना करावीने अपाय छे, वास्तुपूजा प्रसंगे सोनानुं अथवा चांदीनुं वास्तु (चोरस पत्रुं) करावीने तेने अपाय छे, तेथी आ बाबतनो सूचीमां निर्देश कर्यो छे, तोल लख्युं नथी, परिस्थितिने अनुसारे प्रतिष्ठाप्रसंगे तोलो बे तोला सोनु तथा ४०-५० तोला चांदी तो सूत्रधार शिल्पीना हाथमां जाय एवी उदारता प्रतिष्ठा करावनारे अवश्य करवी जोइये.
पूर्वे अंजनशलाका महापूजादिमां नाणांनो व्यवहार न हतो, पण वर्तमान समयमां विधिकारो पगले पगले नाणां मूकावे छे, अमुक विधिकारो तो उत्सव दर्मियान ४००-५०० रु. नी पोताना हाथे गति करे छे, ए विधिकारोनी प्रतिष्ठानी क्षति करनारुं छे, प्रतिष्ठा करावनारे यथोचित याचकादिदान पोताने हाथे आपकुं जोइये.
अधिवासना मंडप करण स्नान मंडप करण
२- पादलिप्त-प्रतिष्ठापद्धति प्रतिष्ठा कारक जात सूची सुवर्णादिकलश ८
आद्य कलश ४
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वारक ( माटीना कलशिया) १०८ चतुरंग वेदी १
॥ प्रतिष्ठोपस्करः ॥
।। ५२९ ।।
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