Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 643
________________ हरमजी= राती माटी-रजमी तुवरी= पीलीमाटी-भेट-मुलतानी ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ क्रयाणकरूची। माटी ॥ ५६७ सुवर्णमाक्षिक = एनामथी प्रसिद्ध खनिज द्रव्य रूप्यमाक्षिक= स्वनाम ख्यात खनिज द्रव्य शमी= खिजडी-न्हानी खिजडी। राजशमी= खीजडो-मोटो खीजडो हयुषा= चोपचीनी- झाड काकनासा कौआठोडी काकजंघा= स्वनाम ख्यात बूटी पर्पटक= पापडो-पित्तपापडो राजहंस= स्वनाम ख्यात पुष्करमूल= पोकरमूल काञ्चनार% कचनार वृक्ष रोहितक= रोहिडानुं झाड वंश= वांस-वांसडानुं झाड अंकोल्ल= अंकोलनुं झाड कौडिन्य = लोबाननुं झाड-कोडिओ लोबान श्लेष्मान्तक= गुंदीनुं झाड-गुंदी तिंतिडीक= आंबली-आंबलीनु फल अम्लवेतस= स्वनाम ख्यात कपिस्थ= कोठ-कोठ- फल नालिकेर= नालिएर खर्जूर= खजूर-छुहारा बीजपूरक= बीजोरं नारिंग= नारंगी जंभीर= जंबेरी निंबूक= लींबु अक्षाट= अखरोट चांगेरी= खाटी लूणी अम्लिका= आंबली, झाड करीर= केरडानुं झाड वास्तुक= वथुओ-एक जातनी भाजी. कुसुंभ= कसुंभो-कुसुंबीनां फूल लाक्षा= लाख जतुका= बोरडीनी लाख-कणवज लांगली= एक जातने झेरी वेलो-हलिनी मिश्रेया= सुवा मूलक= मूलो तन्दुलीयक= तांदलिओ-पंदलेवो द्रोणपुष्पी= सूर्यमुखी-बपोरियानुं झाड आमली= आवल-भूम्यामलकी आवलकी ब्राह्मी= स्वनामख्यात | ।। ५६७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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