Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 646
________________ ॥ क्रयाण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ करूची। "अप्रसिद्धं रोगहरं, भेषजं यन्महीतले । तत्क्रयाणकमुद्दिष्टं, शेषं वस्तु प्रकीर्तितम् ॥" अर्थात्-उक्तातिरिक्त पण जे वस्तु रोगनाशक होइ दवा रुपे वपराती होय तेने क्रयाणकमां परिगणित करवी अने जेमां क्रयाणकनु उक्त लक्षण न होय तेने सामान्य वस्तु रुपे गणवी. सुवर्णादि धातुओ, खाद्य धान्यो अने वस्त्रोने क्रयाणक न गणतां रत्न तरीके गणवां, शेष गांधी-पंसारीनी दूकाने मलती बधी वनस्पतिओ तथा मृद्दारसींग आदि खनिज द्रव्योने क्रयाणको गणी उपयोगमा लेवां. इति कल्याणकलिका-प्रतिष्ठापद्धतावयम् । साधनाख्योऽगमत् खण्ड-स्तृतीयः परिपूर्णताम् ॥ आ प्रमाणे कल्याणकलिका प्रतिष्ठापद्धतिमा आ साधन नामक त्रीजो खंड समाप्त थयो. इति तपगच्छाचार्यश्रीविजयसिद्धिसूरिनिगदानुसारि - संविग्नश्रमणावतंस श्रीकेसरविजयशिष्यपं०कल्याणविजयगणिविरचितायां कल्याणकलिकाप्रतिष्ठापद्धतौ साधननामा तृतीयः खण्डः समाप्तः। एतत्समाप्तौ च समाप्तेयं कल्याणकलिकाप्रतिष्ठापद्धतिः ॥ For Private Personal Use Only Jain Education International Mww.jainelibrary.org

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