Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 645
________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ॥ क्रयाणकरूची॥ चंपक= चम्पो सोवनचंपो बकुल= बोलसिरि नामनुं झाड तिलक= तिलकवृक्ष-तलकडो अतिमुक्तक= मोतीओ-बटमोगरो. कुन्द= कुंदवृक्ष- झाड कुमारी= कुंआरी-घीग्वार अतसी= अलसी-अलसीनो क्षुप हिंगुल= हिंगलोक-शिंगरक, हरिताल= हरताल मनःशिला= मनशील, गंधक= गंधकनामथी प्रसिद्ध छे. पारद= पारो गैरिक= सोनागेरु सौराष्ट्री= एक जातनी माटी-गोपीचंदन गोरोचना= गोरोचन. अभ्रक अबरख, वाताम% बदाम-बादाम, मुंडी= मुंडापाती बूटी महामुंडी= गोरखमुंडी, बूटी प्रपुनाट= पमाडिओ-चक्रमर्द. बोल= हीराबोल सिंदूर= स्वनामख्यात. शंखप्रस्तरी= संगेजर-शंखजीरं, शृंगाटक= सींघोडां-सूकां सीघोडा, घूनीरा- घूनरो एक जातनुं घास. सूचनाअमोए जे क्रयाणकोनी सूची आपेली छे ते बधां आपणा गुजरात तथा मारवाड देशमां उपलब्ध थई शके एवां छे अने तेम छतां अमुक चीज न मली शके तो आमां त्रणसोएकोतेर उपसंगृहित छे ते पैकी, कोइपण लेबु अने ३६० नी संख्या पूरी करवी. कदापि ११ थी वधु चीजो न मले अगर न ओलखाय तो तेना बदलामां बीजां क्रयाणको पण लेइ शकाय छे, मात्र तेमां क्रयाणकनु लक्षण घटवू जोइये, क्रयाणकर्नु लक्षण आ प्रमाणे छे. Jan Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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