Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 644
________________ ।। कल्याणकलिका. || क्रयाणकरूची ॥ खं०२॥ ॥ ५६८ ॥ थील अरिष्ट= आरेठानुं झाड वाराही= वाराहीकंद-खीलोडा पुत्रजीवा धोला फुलनी भोयरींगणी. मांसरोहिणी= कडु-कुटकी कुष्माण्डक= कोलुं वृद्धदारु= वरधारो. महातुंबी= मोटीतुंबीनो वेलो वन्ध्याकर्कोटिका= वांझकंकोडी. चिर्भटी चिभडानो वेलो-चिभडियानी त्रिपत्रिका तरवरण, झाड पिंडीतक= लोबान धूप कटुचिर्भटी= कडवी चीभडीनो वेलो सिंदुवार= संदेसरानुं झाड-सिंदोडा विष्णुक्रान्ता= अपराजिता अश्वगन्धा= आसगन्ध. क्षीरिणी= रायणनुं झाड मदयन्ती= मोगरानो वेलो सर्पाक्षी= खरसणिओ-शरफोका शृंगराज= भांगरो-जलभांगरो. कर्दमपुष्पी= मगनो क्षुप शिरीष= सरसडो-सरडो करवीर= कणेर धोलो अगस्ति= अगथिओ रक्तकरवीर = कणेर रातो- लालकणेर. विटिका= विटी-पीतचंदन धतूर= धतूरो स्वर्णपुष्पी= पीला फुलनी केतकी यवानी= अजवायन-अजमो. लक्ष्मणा= ए नामनो कंद पलंकषा= रक्तपलाश. दधिपुष्पी= श्वेता अपराजिता गोजिह्वा= गांजवा कस्तूरी= स्वनामख्यात. कर्पूर कपूर जातिपत्री= जावंत्री जातिफल= जायफल कक्कोलक= सुगंधी कोकला लवंग= लविंग दमनक= दमरो-मरुओ क—र= कचूरो मालती= चमेलीनो वेलो जाति= जाईनो वेलो यूथिका= जुहीनो वेलो. शतपत्रिका सेवंत्री-गुलाब का ॥ ५६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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