Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 630
________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५५४ ।। Jain Education International मांसी (४) मिश्री (८) मीलसह १ (७) मुद्रिका (१) मुद्रिका ४ ( सुपर्ण) (५/६/७) सरलमुद्रिका ( ५ ) मुद्रिका ५ (सुवर्ण) (८) मुद्रिकाहस्तसूरि (२) मुर्भ (१) मुखाच्छादन (कंकण बंधनान्तरसदश वस्त्रेण सर्व मुखाच्छादन) (६) मुखोद्घाटन (बिंबना) (१३२|३|४|६) मुरकी (३) मूलवेदिका (१) मूलिका ( मयूरशिखा बिरहक कंकोललक्ष्मणा शंखपुष्पी शरपुंखा विष्णुकांता चक्रांका सर्पाक्षी महानीली) (२|३|४|७) मूलिका स्नात्र ( मयुरशिखा विरहक अंकोल्ल लक्ष्मणा शंखाहूलि खुरसाणिओ (शरपुंखा ) गंधनोती महानोली) (५) मृत्तिका (१) मृत्तिका वर्ग (वल्मीक १ पर्वताग्र २ नद्युभयतट ३ महानदी संगम ४ कुश मूल ५ बिल्वमूल ६ चतुष्पथ ७ दंतिदंत ८ गोशृंग ९ राजद्वार १० पद्मसर ११ एक वृक्षादि ) (१) मृत्तिका ( गजदंत वृषभविषाण पर्वतवल्मीक महाराजद्वार नद्युभयतट नदी संगम पद्मतडागोद्भव ) (२|३|४|५|६|७१८) मृत्तिका - कुंभकार चक्र (११२।३३८) मृत्तिका मांगल्य ( २ ) For Private & Personal Use Only मृगमद (१) मोदक (२२४) मोदक सनालिकेर ५ सेरो (६८) मोरेंडा (५ मुंग ५ जब ५ गोहूं ५ चिणा ५ तिलनालाडु) (२) मौक्तिक (१) यक्षकर्दम (८) युगाद्वय (सित ) ( १ ) रकेबी १(सुवर्ण) (८) रक्तसूत्र ( १ ) तर्कुक (१) रत्न - वर्ग (१) (वज्र सूर्यकान्त नील महानील मौक्तिक पुष्पराग पद्मराग - वेडूर्यादि ) (१) राइण (६८) राजादन ( ४ ) ॥ बिम्ब स्थापना प्रतिष्ठो पकरण सूचि ॥ ।। ५५४ ।। www.jainelibrary.org

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