Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
View full book text
________________
८-क्रयाणकरूची
मूर्वा = मोरवेल
॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥क्रयाणका करूची ॥
मदनफल = मीढल, मधुयष्टि= जेठीमधनी लाकडी तुम्बी= तुंबडीनो वेलो निम्ब= लींबडानु झाड बिम्बी= गिलोडानो वेलो इन्द्रवारुणी= इंदरवरणांनो वेलो तरसुडानी वेल. उत्तरवारुणी= दुधेलीनो वेलो-वाड
देवदाली= कुकडवेल विडंगफल= वावडिंग वेतस= नेतरतुं झाड दन्ती= अजेपालानुं झाड-नेपालानुं झाड चित्रक= चित्रकनुं झाड-कालो चितरो.' चित्रकरक्त= राती छालनो चित्रक उन्दरकर्णी= उंदरकनी-गरणी। कोषातकी= तोरी-तोरीना शाकनो वोलो. राजकोषातकी= गलकानो वेलो करंज= करंजनुं वृक्ष पूतिकरंज= लताकरंज, करकचियानो वेलो। पिप्पली= पीपर लींडी पीपर पिप्पलीमूल= पीपलामूल, गंठोडां
सैंधव= पंजाबधी आवतुं सींधालूण सौवर्च= संचल लूण, लाल मीढुं कृष्णसौवर्चल= कालुं संचर लूण बिडलवण= स्वनाम ख्यात पाक्यलवण= पंच लवणमांनो एक क्षार समुद्रलवण= समुद्रखार रोमकलवण= विलायती मीटुं यवक्षार= जवखार सर्जिका= साजीखारो वचा= वज-घोडा वज उग्रगंधा वचा खुरासानी= खुरासानी वज. क्षुद्रला= नानी एलची. एला= एलची-मध्यम एलची बृहदेला= मोटी एलची.
दुधेली
लघूत्तरवारुणी= भोयदुधेली कर्कटी= काकडीनो वेलो कुटज= कडायानुं झाड इंद्रजब= कुटज वृक्षनां बीज, कडवा इंद्रजव,
VAS
GS
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660