Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
|| क्रयाणकरूची॥
॥ ५६२ ।।
सर्षप= सरसव पीला कृष्ण सर्षप= काला सरसव-रायलो आसुरी = राई त्रिबीज= तरखणनां बीज. मालविनी= नसोतर- झाड हरीतकी= हरडे-मोटी हरडे विभीतक= बहेडां-बिभीतक वृक्षनु फल
आमलक= आमलानुं फल त्रिफला= हरडे बहेडा आमलां संयुक्त स्नुही= थोर-हाथाली थोर. शंखपुष्पी= शंखावली लता नीलिनी= नील गलीनुं झाड रोध्र= लोधर बृहद्लोध्र पठानी लोघर कृतमाल= गरमालो-गरमालानी फली.
कम्पिल्लक= कंपिलो-कपीलो
कुलत्थ= कलथिया-ए नामनुं धान्य स्वर्णक्षीरी= सत्यानाशी.
माक्षिक= मक्षिकाकृत मधु-मध कुष्ट= सुगंधीद्रव्य कूठ
पौक्षिक= पूतिका-लघु मक्षिका कृत मधुबिल्व= बिल्लीनुं झाड वा बिल्वफल श्वेत मधु अपामार्ग = अघाडो-आगी झाडो. सित्थुक= मीण अरणी= मोटा अरणानुं झाड
शर्करा= साकर अरणिका= न्हानी अरणी
विश्वभैषज= सुंठ पाटला= पाडलनुं झाड
कृष्णमरिच= कालां मरी कंटकारिका= उभी रींगणी, मोटी रींगणी त्रिकटु- सुंठ-कृष्ण मरिच-पीपर संमिलित क्षुद्रकंटकारिका= न्हानी रोंगणी-भोंय रींगणी नागकेशर= स्वनामख्यात गोक्षुरु= गोखरु कांटी.
हरिद्रा- हलदर देवदारु= देवदारुनु वृक्ष
दारुहरिद्रा= दारुहलदर रास्ना= स्वनाम ख्यात वात व्याधिनाशक औषधि । अंबष्ठा= आंबा हलदर. यव जव
राल= स्वनामख्यात शतपुष्पा वरिहाली
श्रीखण्ड=सूखड-पाकुं चंदन
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॥५६२ ॥
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