Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 610
________________ ॥ प्रतिष्ठो श । कल्याणकलिका. खं० २॥ पस्करः ॥ ॥ ५३४ ।। कपित्थी ५५, मुद्गपर्णी ५६, मापपर्णी । ५७, श्रीपर्णी ५८, खदिर ५९, पलाश ६०, छिन्नप्ररोही ६१, लज्जालू ६२, नागवेल ६३, वेऊ ६४, कुडो ६५, दाडिम ६६, क्षीर दाडिम ६७, कर्मदी ६८, करंजी ६९, फंटासेलिआ ७०, वज ७१, आसंघ ७२, निर्गुडी ७३, भांगरो ७४, बोडिथेरी ७५, ह्स्वपत्रा-स्नुही ७६, धमासो ७७, जवासो ७८, अरडूसो ७९, दूधेली ८०, इंद्रवारुणी ८१, कासंदो ८२, गोरंभा ८३, कींच ८४, अगथिओ ८५, केतकी ८६, पारधि ८७, नवमल्लिका (नीमाली) ८८, कणवीर ८९, आंबो ९०, कुंद ९१, मुचकुंद ९२, किरमालो ९३, पिप्पली ९४, करणी ९५, | नारंगी ९६, अतिमुक्तक ९७, पाटला ९८, कांचनार ९९, त्रांबावेल १००, वेतस १०१, सर्वौषधि चूर्ण) शतपत्रिका १०२, (सेवंत्री) आ पण मूलशत ११-सेवंत्रादि कुसुमस्नात्र कहेवाय छे. सातमु मूलिका स्नात्र आ शतमूलनु १२-गंधस्नात्र (सिल्हाखल, उपलोट, पण कराय छे. मुरमांसी, चंदन, अगर, केसर, ८-प्रथमाष्टवर्गस्नात्र-(उपलोट १, वज २, कर्पूरमय, गन्ध) लोध्र ३, बीरणिमूल ४, देवदारु ५, दूर्वा ६, १३-वासस्नात्र (बरास मिश्रित चंदन | घसीने करेल धवलवास) ९-द्वितीयाष्टकवर्ग (मेदा १, महामेदा २, १४-चंदनस्नात्र(जाडा चंदनना घोल बडे)| काकोली ३, क्षीरकाकोली ४, जीवक ५, १५-कुंकुमस्नात्र (चंदनमूठा बडे जाटुं ऋषभक ६, नखी ७, महानखी ८, ए दिल्ली केसर घसीने जलमां नाखीने) बाजुधी आवे छे. १६-तीर्थजलस्नात्र (गंगा आदिनां १०-सौषधिस्नात्र (हलद्र वज सुंआ बालो तीर्थजलो जलमां नाखीने) माथ गोठिवणो प्रियंगु मुरमांसी कचूरो उपलोट १७-कर्पूरस्नात्र (कर्पूर घसीने तज तमालपत्र एलची नामकेसर लवंग कक्कोल अभिषेक जलमां नाखीने) जायफल जावंत्री नखी चंदन सिल्हाखल आदि १८-पुष्पांजलिस्नात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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