Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 608
________________ । कल्याण कलिका. खं० २॥ ॥ प्रतिष्ठोपस्करः ।। ॥ ५३२ ।। माई साडी (कुसुंभी वस्त्र) मीढल (ऋद्धि वृद्धि सहित) आरीठा मालाओ, जवमालाओ श्वेतसर्षप (लोहाऽच्छेदितनीरक्षापोटली) अर्धभाजन (सरसव-दहि-अक्षतघृत - डाभ-मय) गेवासूत्र वेष्टित पूर्ण त्राक), पुंखणोपकरण (धूंसर-मुसल- रवाइओ), पुंखणारी स्त्री ४ (स कांकणी) भांमणां शराव, गंगाजल समूल दर्भ, गंगावेलु कूवा नदीनां १०८ पाणी, ३६० क्रियाणानो पडो घसी सूखडनो वास धवलो, वास (केसर-कपूर-कस्तूरी) भोगपुडी धूपपुडी घणां फूल अखंड तंदुल सेर २ घंट धूपधाणां छत्र चामर पंचशब्द वाजिंत्र नैवेद्य-(घारी, सुंहाली लाडू मांडी ) काकरिआ २५ (मगना ५, तिलना ५, चणाना ५, गहूंना ५, धाणीना ५, फूलीना ५, एवं २५,) बलिशराव ७ (बाट, खीर, करंबो, सातधाननी खीचडी, कूर, सिद्धवडी, पुरडा एवं ७), सातधान (शणबीज १, मसूर २, जव ३, | कांग ४, अडद ५, सरसव ६, वाल ७.) सातधान (प्रकारन्तरे-शालि १, जव २, गहुं ३,मग ४, वाल ५, चणा ६, चोला ७.) नालिएर, सोपारी (पूगफल), खजूर, द्राख, वरसोलां, साकर, फलहुलि (दाडिम, जंबीर, नारंगी, बीजोरां, सेलडी, आंबा), घृत वाटको, दहि वाटको, बाकुला वानी ३, ४-गुणरस्नीयाभिषेकोपकरण सूची १-सुवर्णचूर्ण वा ४ सुवर्ण कलश अथवा सुवर्णयुक्त जलस्नात्र. २-पंचरत्नस्नात्र (प्रवाल १, मौक्तिक २, स्वर्ण ३, रूप्य ४, ताम्र ५.) ३-कषायछालस्नात्र (पीपली, पीपल, शिरीष, उंबर, वड,चंपो, अशोक,आंबो, Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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