Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
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॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
॥ बिम्बस्थापना प्रतिष्ठोपकरणसूचि ॥
।। ५४२ ॥
अगुरु (कृष्ण) (२४) अभ्रक (१) अमृतफल (४) अंगलूछणां (६८) अंजन (मधु) (१) अंजन (कालो) सुरमो घी मधु साकर (२।३।४।५।६) अंजन (गोघृत टां.१८, साकर टां.९, कालो सुरमो टांक १२.(७) अंजन | (रातो सुरमो, साकर, वरास, कस्तुरी, मोती, मुंगीओ, चुनी, सोनो, रूपो, गावो घी, प्रत्यन्तरे मधु, प्रत्यन्तरे कालो सुरमो) (८) अर्घ (सिद्धार्थ, दधि, अक्षत, घृत, दर्भ)(२।३।५।६।७८ः
अर्घ (सिद्धार्थ,-दधि, घृत, अक्षत, तंदुल, दूर्वा, चंदन, जव) (४), अलंकार पूजा (२।३।५) अवमिणनोपकरण (३) अवमिनन(३) अष्टमंगल (यववारक वेदिकादि)(१) अष्टगंध (८) अष्टक वर्ग १ (कुष्टप्रियंगु वचा लोद्र उशीर देवदारु दूर्वा मधुवष्ठि ऋद्धि वृद्धि) (२३) कुष्ठादिप्रथमाष्टबर्ग (४) अष्टवर्ग १ (उपलोट वज्र लोध्र वीरणिमल देवदारू ध्रो जेठीमधु ऋद्धि वृद्धि) (५६) अष्टवर्ग १ (उपलोट वज्र लोध हीरवणी मूल देवदारु जेठीमध दुर्वा ऋद्धि वृद्धि) (८) अष्टवर्ग १ (कुष्ट प्रियंगु वचा लोद्र उशीर सतावरी
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घोडावज देवदारु द्रोई जेठीमधु ऋद्धि बृद्धि प्रमुखा) (७) अष्टवर्ग २ (मेदा महामेदा कंकोल खीरकंकोल जीवक ऋषभक नखी महानखी)(२॥३) अष्टवर्ग २ (मेदादि) (४) अष्टवर्ग २ (मेदा महामेदा काकोली खीर, काकोली, जीवक ऋषभक नखी महानखी) (५।६७) अष्टवर्ग २ (पतंजारी वा कुष्ट विदारी कंदकचुरो काचरी नखला कंकोडी खीरकंद मुसली बेई) (८) आचार्य (१) आचार्य योग्य वस्त्र मडि २ (७) आचार्य योग्य सदश वस्त्र (५) आच्छादन पदस्व (१)
॥ ५४२ ॥
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