Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 598
________________ ।। कल्याण कलिका. खं० २॥ Me || स्मरणबास्तोत्राणि ॥ थाना द चन SMA थान कुरुनामि जनपद तिलकसमवड हत्थिणाउर सार, जिणनयरीकंचण रयण धन धण सुगुण जन आधार ॥॥ तिहां राय राजे बहुदिवाजे विश्वसेन नरिन्द, निज प्रकृति सोमह तेज तपनह भानु चन्द दिणंद । तस पणय खांणि पट्टराणी नामे अचिरा नारी, सुह सेज सूती चउद पेखे सुपन सार दु-बार ॥२॥ सबट्ठसिद्ध विमाणथी तब चविओ उर उपन्न, बहु भद्द भद्दव कसिण सत्तमि दिवस गुण संपुन्न । तव रोग सोग वियोग विड्वर मारि ईति समंत, वर सयल मंगल केलि कमला घर घर विलसंत ॥३॥ वरचंद योगे जेष्ठ तेरसी वदि दिने थयो जन्म, तव मज्झ रयणीइं दिसा कुमारी करे सुईकम्म । तव चलिअ आसण मुणिअ सवि हरि घंटानादे मेलि, सुरवृंद साथई मेरुमथई रचे मंगलकेलि ॥४॥ ढाल भाषानी । नाभिराया घर नन्दन जनमीयाए-ए देशी । विश्वसेन नृप घरे नंदन जनमीयाए तिहुंअण-भवियण प्रेमस्युं प्रणमीयाए, त्रुटक-हारे प्रणमीया चउसट्ठि इंद लेइ ठवे मेरुगिरीद, सुरनदि नीर समीर तिहां खीर जलनिधि नीर ॥५॥ सिंहासणे सुरराज जिहां मिल्या देवसमाज, ओषधिनी जाति सर्वे सरस कमल विख्यात ॥६॥ ढाल-विख्यात विविध परे कर्मनाए तिहां हर्ष भरि सुरभि वरदामनाए, त्रुटक-हारे वरदामने मागधनामे जेह तीरथ उत्तम ठाम, तेहतणी माटि सर्व करे ग्रहण सर्व सुपर्व ॥७॥ बावना चंदन सार अभिओगिक सुर अधिकार, मनी धरी अधिक आणंद अवलोकंता जिनचंद ॥८॥ SHA ड ab कर ब ॥ ५२२ ।। Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660