Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 596
________________ ॥ स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ कस्तोत्राणि ॥ ॥ ५२० ॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥१९॥ श्री समवसरणस्तवः ।। थुणिमो केवलिवत्थं, वरविज्जाणंदधम्मकित्तिऽत्थं । देविन्दनयपयत्थं, तित्थयरं समवसरणत्थं ॥१॥ पयडिअसमत्थभावो, केवलिभावो जिणाण जत्थ भवे । सोहंति सव्वओ तहिं, महिमाजोयणमनिलकुमरा ॥२॥ वरिसंतिमेहकुमारा, सुरहिजलं उउसुरा कुसुमपसरं । विरयंति वणा मणिकणग-रयणचित्तं महिअलं तो ॥३॥ अभिन्तर मज्झबहि, तिवप्पमणिरयणकणयकविसीसा । रयणज्जुणरुप्पमया, वेमाणिअजोइभवणकया ॥४॥ वट्टम्मि दुतीसंगुल-तित्तीस धणुपिहुल पणसय धणुच्चा । छधणुसय इगकोसं-तरा य रयणमयचउदारा ॥५॥ चउरंसे इगधणुसय-पिहुवप्पा सट्ठकोसअंतरिआ । पढमबिआ विअ तइआ, कोसंतर पुन्वमिव सेसं ॥६॥ सोवाणसहसदसकर-पिहुच्च गंतुं भोवो पढमवष्पो । तो पन्ना धणुपयरो, तओ अ सोवाण पण सहसा ॥७॥ तो वियवप्पोपन्ना-धणुपयर सोवाण सहसपण तत्तो । तइओ वप्पा छस्सय-धणु इगकोसेहितो पीढं ॥८॥ चउदारं तिसोवाणं, मज्झेमाणिपीढयं जिणतणुच्चं । दो धणुसय पिहुदिहं,सड्ढदुकोसेहिं धरणिअला ॥९॥ जिणतणुवारगुणुच्चो, समहिअजोअणपिहू असोगतरू । तयहो य देवच्छन्दो, चउसीहासण सपयपीढा ॥१०॥ तदुवरि चउ छत्ततिआ, पडिरूवतिगं तहट्ठ चमरधरा । पुरओ कणयकुसेसय- ट्ठिअफालिअधम्मचकचउ ॥११॥ झयछत्तमयरमंगल-पंचालीदामवेइवरकलसे । पइदारं मणितोरण-तिय धूवघडी कुणंति वणा ॥१२॥ For Private Personal Use Only ॥ ५२० ॥ चा www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660