Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 583
________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ |॥ स्मरणस्तोत्राणि ॥ ॥ ५०७ ANANAS सत्तरिसयजिनस्तवनम् । (तिजयपहुत्त) तिजयपहुत्तपयासिअ-अट्ठमहापाडिहेरजुत्ताणं । समयखित्तठियाणं, सरेमि चकं जिणिंदाणं ॥१॥ पणवीसा य असीआ, पनरस पन्नास जिणवरसमूहो । नासेउ सयलदुरिअं, भविआणं भत्तिजुत्ताणं ॥२॥ वीसा पणयाला विअ, तीसा पन्नतरी जिणवरिंदा । गहभूअरक्खसाइणि - घोरुवसग्गं पणासंतु ॥३॥ सत्तरि पणतीसा विअ, सठ्ठी पंचेव जिणगणो एसो । वाहि-जल-जलण-हरि करि चोरारि-महाभयं हरउ ॥४॥ पणनन्ना य दसेवय पन्नही तहय चेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिआ सिद्धा ॥५॥ हरहुंहः सरसुं सः, हरहुंहः तहय चेव सरसुं सः । आ लिहिअन्नामगभं, चकं किर सबओभई ॥६॥ रोहिणिपन्नत्ती वज-सिंखला तहय वज्जअंकुसिआ। चकेसरिनरदत्ता, कालिमाहाकालि तह गोरी ७ गंधारिमहाजाला, माणवि वइरुट्ट तहय अच्छुत्ता। माणसि महामाणसिआ, विज्जादेवीउ रक्खंतु ॥८॥ पंचदस कम्मभूमीसु, उप्पन्नं सत्तरिंजिणाण सयं विविहरयणाइवन्नो वसोहिअं हरउ दरिआई ॥९॥ चउतीसअइसयजुआ । अट्टमहापाडिहेरकयसोहा । तित्थयरा गयमोहा, झाएयब्वा पयत्तेणं ॥१०॥ ॐ वरकरणयसंखविदुम- मरगयघणसंनिभं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सञ्वामरपूइअं वंदे स्वाहा ॥११॥ ॐ भवणवइवाणमंतर-जोइसवासी विमाणवासी अ । जे केइ दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा ॥१२॥ चंदणकप्पूरेणं, फलहे लिहिऊण खालिअं पीअं । एगंतराइगहभूअ - साइणीमुग्गलपणासं ॥१३॥ For Private & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education International

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