Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 590
________________ ॥ स्मरण ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ कास्तोत्राणि ॥ ॥ ५१४ा तमहं जिणचंद, अजिअं जिअमोहं । धुयसव्वकिलेस, पयओ पणमामि ॥२९।। नंदिअयं । अवंदिअयस्सा रिसिगणदेवगणेहि, ते देवबहुहिं पयओ पणमिअस्सा, जस्स जगुत्तमसासणअस्सा । भत्तिवसागयपिंडिअयाहिं, देववरच्छरसा बहुआहिं, सुरवररइगुणपंडिअयाहिं ॥३०॥ भासुरयं । वंस-सद्द-तंति-ताल-मेलिए-तिउक्खराभिरामसद्दमीसए कए अ, सुइसमाणणे अ सुद्धसज्जगीयपायजालघंटिआहिं, वलयमेहलाकलावनेउराभिरामसद्दमीसए कए अ । देवनट्टिआहिं हावभावविन्भमप्पगारएहिं नच्चिऊण अंगहारएहिं, वंदिआ य जस्स ते सुविकमा कमा तयं तिलोयसञ्चसत्तसंतिकारयं, पसंतसवपावदोसमेसऽहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥३१॥ नारायओ। छत्तचामरपडागजूअजवमंडिआ, झयवरमगरतुरयसिरिवच्छसुलंछणा । दीवसमुद्दमंदरदिसागयसोहिआ,सत्थिअवसहसीहरहचक्कवरंकिआ।।३२॥ ललिअयं । सहावलट्ठा समप्पइट्ठा, अदोसदुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा । पसायसिट्ठा तवेणपुट्टा, सिरिहिंइट्ठा रिसीहिं जुट्ठा ॥३३॥ वाणवासिआ। ते तवेण धुअसव्वपावया, सबलोअहिअमूलपावया । संथुआ अजिअसंतिपायया, इंतु मे सिवसुहाण दायया ॥३४॥ अपरांतिका। एवं तवबलविउलं, थुअंमए अजिअसंतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयं विउलं ॥३५।। गाहा । 10 alth ॥ ५१४ ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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